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इधर-उधर से.....

१) ख्वाबों के बोझ से कुचले 
आसमां में उडान का सबब
धरती पर गिरा वो लहूलुहान परिंदा बता गया...

२) उसे कोई त्याग की प्रतिमूर्ति कहता था,
कोई महान, तो कोई देवी... सुना है वो कल रात 
गुज़र गई, पर जीते जी किसी ने उसे इन्सान नहीं समझा....

३) याद है  उस रात तुमने मेरे तकिये के नीचे
कुछ अध् खिले सपने छिपाए थे, सुबह जब
आँख खुली तो उनकी खुशबू से मेरा कमरा महका हुआ था...

४) जब भी तुम घर आये, तुम्हारे चहरे को
डायरी में दर्ज किया, आज डायरी के पन्ने 
पलटे तो देखा तुम्हारा सुर्ख चेहरा ज़र्द पड़ा था....

५) तुम तो कुछ भी नहीं भूलते थे ना..
कल सामने से यूँ निकले जैसे कभी देखा न हो,
शायद यादों के दरख़्त पर धूल जम आई होगी....

६) उस चहरे से मासूमियत झलकती थी,
कल देखा तो उस पर अनगिनत खरोंचे थीं,
हवाएं जहाँ से गुजरती है अपने निशां छोड़ जाती हैं...

७) उस अछूत के घर रोशनी कम ही आती थी 
पर कुछ दिनों से उसका घर गुलज़ार है,
सुना है, सरकार  ने सूरज की रोशनी पर भी 'कोटा' लगा दिया है...... 

टिप्पणियाँ

aap bahut acchha likhte hain...aapki ye kshanikaaye padh kar apke blog par aana safalta ko sarthak karta hai.
Rahul Ranjan Rai ने कहा…
Thanks a lot 4 your compliment and motivations ...
बेहद प्रभावशाली क्षणिकाएं!. आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ.
Rahul Ranjan Rai ने कहा…
Thanks Vandana....and hope your visiting will continue... :)

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Calendar

  यूं तो साल दर साल, महीने दर महीने इसे पलट दिया जाता है, मगर कभी- वक्त ठहर सा जाता है, मानो calendar Freez कर दिया गया हो. ऐसा ही कुछ हुआ था हम तुम अपने पराए सब के सब रुक गए थे.  देश रुक गया था। कितने दिन से प्लानिग कर रहे थे हम, एक महीने पहले ही ले आया था वो pregnancy kit उसी दिन तो पता चला था कि हम अब मां बाप बनने वाले हैं। मैं तुरन्त घर phone कर बताने वाला था जब बीबी ने यह कह रोक दिया कि एक बार श्योर हो लेते हैं, तब बताना, कहीं false positive हुआ तो मज़ाक बन जाएगे। रुक गया, कौन जानता था कि बस कुछ देर और यह देश भी रुकने वाला है। शाम होते ही मोदी जी की  आवाज़ ने अफरा तफरी मचा दी Lockdown इस शब्द से रूबरू हुआ था , मैं भी और अपना देश भी। कौन जानता था कि आने वाले दिन कितने मुश्किल होने वाले हैं। राशन की दुकान पर सैकड़ो लोग खडे थे। बहुत कुछ लाना था, मगर बस 5 Kg चावल ही हाथ लगा। मायूस सा घर लौटा था।        7 दिन हो गए थे, राशन की दुकान कभी खुलती तो कभी बन्द ।  4-5दिन बितते बीतते दुध मिलाने लगा था। सातवें दिन जब दूसरा test भी Positive आया तो घर में बता दिया था कि अब हम दो से तीन हो रहे हैं

बस यूं ही !

1) कभी यहाँ कभी वहाँ, कभी इधर कभी उधर, हवा के झोंकों के साथ, सूखे पत्ते की मानिंद, काटी थी डोर मेरी साँसों की, अपनी दांतों से, किसी ने एक रोज!   2) सिगरेट जला, अपने होठों से लगाया ही था, कि उस पे रेंगती चींटी से बोशा मिला,ज़ुदा हो ज़मीन पर जा गिरी सिगरेट, कहीं तुम भी उस रोज कोई चींटी तो नहीं ले आए थे अपने अधरों पे, जो..........   3) नमी है हवा में, दीवारों में है सीलन, धूप कमरे तक पहुचती नहीं … कितना भी सुखाओ, खमबख्त फंफूंद लग ही जाती है, यादों में!

अंगूर खट्टे हैं-4

लोमडी की आँखें ... या निहार की आँखें....... ... आँखें जो बिन कहे सब कुछ कह जायें....... आँखे जिसने कभी भी निहारिका से झूठ नही बोला........ निहार की ही हो सकती हैं ये आँखें ........... और इन आंखों ने देखते देखते उसे माज़ी (अतीत) के हवाले कर दिया... याद आ गया वो दिन जब वह निहार से मिली थी....... .उस दिन काल सेंटर जाने का मन बिल्कुल ही नही था। मगर जाना ही पडा... सुबह घर पहुचते ही अनिकेत का कॉल ... लडाई... फिर पुरे दिन सो भी नही सकी ... शाम को ओफ्फिस ॥ वही रोज की कहानी .... सर दर्द से फटा जा रहा था ... काम छोड़ .... बहार निकल गई, कॉरिडोर तो पुरा सिगरेट के धुएं से भरा था .. 'पता नही लोग सिगरेट पिने आते हैं या काम करने ' ........... कैंटीन में जा कर बैठ गई.. अपने और अनिकेत के रिश्ते के बारे में सोचने लगी ... न जाने किस की नज़र लग गई थी....वह ग़लत नही थी.. अनिकेत भी ग़लत नही था अगर उसकी माने तो.. फिर ग़लत कौन था...और ग़लत क्या था.. ..अब उन्हें एक दुसरे की उन्ही आदतों से चिड होने लगी थी जिन पर कभी मर मिटते थे.. आज-कल उसे कोई भी वज़ह नही नज़र नही आ रही थी जिसकी वजह से दोनों साथ रहें .. फिर