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एक कविता: ये जिंदगी क्या है?

इंटरव्यू दे हताश-निराश घर लौटे हुए, पसीने से तर-बदर , थक कर, मेज़ पर फैली times ascent की कतरनों के बीच रिज्यूमे की फाइल रख कर , अक्सर सोचता हूँ मैं कि ये जिंदगी क्या है? एक बुझते सिग्र्रेट से निकलता जलता हुआ धुआं, बरसात के मौसम में पानी को तरसता एक कुआँ, शेयर बाज़ार के संग डूबता-उतरता इन्सान खेलता हुआ जुआ। अक्सर सोचता हूँ मैं ये जिंदगी क्या है? संसद में नोट, परमाणु करार पर वोट, TV से चिपका इन्हे देखता एक सख्स खाए दिल पर चोट, T.R.P. की रेस में खोई मिडिया, सिंगूर-श्राइन में उलझी इंडिया। अक्सर सोचता हूँ मैं कि ये जिंदगी क्या है? एक घुसखोर ऑफिसर की जेब से बहार झांकती नोटों की गड्डी, सामने की चाय की दुकान का छोटू और बगल में जलती कोयले की भट्टी एक टूटी कश्ती पर सवार आम आदमी हालत के थपेडों से पस्त , पब में होती एक पेज -३ पार्टी टकीला-पटियाला पी मस्त । अक्सर सोचता हूँ मैं कि ये जिंदगी क्या है? सुने सड़क को निहारती एक जोड़ी पथराई आँखें सीने में दफ़न होती एक बूढी साँस, हाँथ में वोटर I.D. लिए एक नए नवेले वोटर की लोकतंत्र से टूटती रही सही आस । अक्सर सोचता हूँ मैं कि ये जिंदगी क्या है?