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मई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रह-गुजर

अल्हड सा बचपन सावन का यौवन, पतझड़ की किलकारी फागुन की पिचकारी  वो नीम, वो झूला, कागज के कप, मिट्टी का चूल्हा एक बरसाती नांव वो सर्दियों में अलाव यौवन का दस्तक, बचपन की विदाई, तेरी पहली अंगड़ाई वो शाम हरजाई. तेरी तिरछी नज़र वो कच्ची उम्र भीड़ में तन्हाई पहले प्यार की परछाई. दिल बेकरार तेरा इंतजार मोहब्बत का इजहार और..तेरा इनकार शूल सी चुभन, मन में दहन बर्ताव अनजाना मेरा रूठना, तेरा मनाना.. स्वप्नों का पल्लवन मुस्कराहट का नमन दिल धीर-अधीर मैं, तुम, और नदी का तीर. जज्बातों की गिरह खयालातों की जिरह मन पे उकेरी इबारत ख्वाबों की ईमारत न अब वो पल हैं नाही पलछिन, न जाने कहाँ हो तुम मैं भी हूँ कहीं गुम... न तू, न मैं क्या जय, क्या पराजय. उन शब्दों की खनक ज्यों विशाल धनक.. काली घटा तेरी छटा, तम् घोर, इत-उत चहुँ ओर.. राह ताकती ऑंखें, तेरी धुंधली छवि, वो मासूम पल, मेरा आज, मेरा कल तेरी रुखी आवाज़ वो रूठे साज रिश्तों की दूरियां तेरी मेरी मजबूरियां बिन तेरे भोर एक ख़ामोशी का शोर, आँखों की गुफ्तगू और तेरी जुस्तजू. तन्हा सा घर

"मेरी दुनियाँ"

कुछ भी नहीं बदला है वो तब भी वैसी ही थी अब भी वैसी ही है ना बदला है प्यार , नाही दुलार गलती पर उसकी वो झिड़की नाही हमारी वो बेवजह की तकरार जब भी मिलती है बे वजह लड़ता हूँ उसकी प्यारी सी डांट के लिए दिन रात मारता हूँ जब वो रूठ जाती है तब एक सूनापन सा नज़र आता है हर जगह फिर उसे मनाने को ना जाने कितनी मिन्नतें करता हूँ.. जब भी मुस्कुराया हंसी उसके लबों पर छाई चोट मुझे लगी नम उसकी आँखें हो आयीं मायूसी ने मुझे घेरा गम की बदली उसके चेहरे पर छाई/घिर आई एक अजीब सा सहर है उसकी पनाह में मायूसी का साया आने से भी घबराता है हर शिकस्त ने खाया है शिकस्त उस दहलीज पर उदासी की कोई रेखा छु कर गुजरती नहीं वहाँ से आँधी में एक सूखे पत्ते की मानिंद गम भी तेरे साये भर से उड़ जाता है बचपन में हांथ पकड़ सड़क पार कराया करती थी अब भी सड़क पार करते वक्त हांथ पकड़ लेती है पुछो तो कहती है “पहले तुम डर जया करते थे , अब मैं...... गाड़ियों की रफ्तार इतनी तेज़ जो हो गयी है... कुछ भी नहीं बदला माँ तू तब भी वैसी ही थी अब भी वैसी ही है..... जो बदला है वो वक्त है.... बचपन में जब मुझे सुलाते सुलाते तू सो जया

"न जाने क्यों?"

मेरी खुशियाँ , मेरे गम हर पल , हर-दम कभी ज्यादा , कभी कम मेरे आँसू , मेरे सपने कभी बेगाने , कभी अपने न जाने क्यों …. मेरी ज़िंदगी में तुम्ही-तुम हो ! मेरी साँसें , मेरी धड़कन कभी सुकून , कभी तड़पन मेरी आरजू , मेरी जुस्तजू मेरी कल्पना और हू-ब-हू कभी ओझल कभी रु-ब-रु न जाने क्यों …. मेरी ज़िंदगी में तुम्ही-तुम हो ! कभी प्यार , कभी तकरार कभी दर्द , कभी करार कभी हंसी , कभी खुशी कभी खिजा , कभी बहार कभी शीतल पुरवाई , कभी ठंडी फुहार न जाने क्यों …. मेरी ज़िंदगी में तुम्ही-तुम हो ! कभी ख्वाबिदा , कभी पोशीदा कभी मूक , कभी वाचाल कभी रंग , कभी गुलाल वंचक की तरह सताते हो पास आ दूर हो जाते हो.. अकिंचन ही मन को भाते हो न जाने क्यों …. मेरी ज़िंदगी में तुम्ही-तुम हो !