बहुत शातिर है , चाल बड़ी तेज़ है उसकी.... कितनी भी कोशिश कर लूँ.... उसके कदमों से कदम नहीं मिला पता हूँ... वह आगे निकाल जाता है , छोड़ के सब कुछ पीछे... लिखावट महीन है उसकी... सबके समझ में नहीं आती.... गणित बहुत अच्छा है , कुछ भी नहीं भूलता , सब याद रखता है , हर साल मेरे कर्मों का हिसाब मेरे चेहरे पर दर्ज़ कर , गुजर जाता है ‘ वक़्त ’ !
कभी -कभी बाज़ार में यूँ भी हो जाता है, क़ीमत ठीक थी, जेब में इतने दाम न थे... ऐसे ही एक बार मैं तुमको हार आया था.........! .... गुलज़ार