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दिसंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गणित

बहुत शातिर है , चाल बड़ी तेज़ है उसकी.... कितनी भी कोशिश कर लूँ.... उसके कदमों से कदम नहीं मिला पता हूँ... वह आगे निकाल जाता है , छोड़ के सब कुछ पीछे... लिखावट महीन है उसकी... सबके समझ में नहीं आती.... गणित बहुत अच्छा है , कुछ भी नहीं भूलता , सब याद रखता है , हर साल मेरे कर्मों का हिसाब मेरे चेहरे पर दर्ज़ कर , गुजर जाता है ‘ वक़्त ’ ! 

मर्द

थोड़ी लज्जित हैं यह आँखें , कुछ बोझ सा होता है पलकों पर! झुकी-2 सी , दबी -2 सी रहती हैं , बोझिल पलकें मेरी! नज़रें नहीं मिला पता हूँ किसी महिला की नज़रों से..... दिल में चोर सा बैठा है एक ‘ मर्द ’ जो शर्मिंदा है.... लज्जित है.... अपने मर्द होने पर!!!!!!!