ये मंजर इतना खामोश सा पहले ना था तू मेरे पास हो के भी दूर इतना ना था हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ हैं, मगर दिल में ये सूनापन पहले ना था. तुम्हे याद कर दिल की कली खिल सी उठती थी आज दिल पे छाया है गुबार, पहले ना था. करार के इंतज़ार में काटी एक उम्र मैंने, करार पा बे-करार सा पहले ना था. उम्मीद का सुर्ख दामन थाम्हे जी रहा था मैं, मेरी उम्मीदों का दामन ज़र्द सा पहले ना था. तन्हाईयों में भी कभी तन्हा सा नहीं था मैं, अपना हो कर भी तू बेगानों सा, पहले ना था. यूँही कही से आ मुस्कराहट लपेट लेती थी मुझे खामोश सा अपना मिजाज़ पहले ना था. ये मंजर इतना खामोश सा पहले ना था तू मेरे पास हो के भी दूर इतना ना था
कभी -कभी बाज़ार में यूँ भी हो जाता है, क़ीमत ठीक थी, जेब में इतने दाम न थे... ऐसे ही एक बार मैं तुमको हार आया था.........! .... गुलज़ार