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जनवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अरण्य मेरी यादों का

अंधेरा बहुत है , फिर भी जगह जगह दीप जलते हैं , धुंध भी है , नमी भी है सब सजोया हुआ है.... पर कोई कमी सी है भरा हुआ है , भीड़ है , फिर भी खाली हैं , सजीव भी हैं , निर्जीव भी , रंगीन हैं , फिर काली हैं , हर रोज कुछ जा जुड़ती हैं दूर जाती हैं फिर मुड़ती हैं , कुछ गुमसुम , कुछ चित्कारती कुछ सोई -2 कुछ खोई-2 किसी ने कोई चेहरा उकेरा है , कुछ अपनी जगह नहीं बना पाईं , कुछ दबंग हैं , जिन्होनें अपनी कद से से ज्यादा जगह घेरा है। कुछ शक्ल , कुछ बेशक्ल एक तरफ अमावस , दूसरी ओर पूनम का बसेरा है। एक महल है , कई कमरे हैं , कहीं रंगीन शामें बिखरी हैं , कहीं छुपा कोई धुंधला सवेरा है। कुछ सुखी , कुछ रूखी कुछ सुर्ख , कुछ ज़र्द कुछ रेत की , कुछ पत्थर सी , कुछ खंडहर , कुछ इमारत , आड़े-टेढ़े अक्षरों से उकेरी इबारत , आसमान में ताने कुछ सीना , झुलसाती धूप में बहाती कुछ पसीना , कोई हल्की , कोई भारी , मूर्त-अमूर्त , कुछ हरे , कुछ ठूंठ , कहीं सच है , कहीं झूठ , कोई मुसकुराती , हँसती , रुलाती , धूप सी , छांव सी , सर्