सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अप्रैल, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मेरे सपने

दालान में बैठ खुद से बतियाते, पलकों पर मुस्कुराते रात रानी की तरह खुद पर इतराते, आँसुओं में डूबते -उतराते, नींद की देहरी लांघने को छट-पटाते, आँखों में कैद, बेचैन, पर फड- फडाते मेरे सपने गुलाबी रातों के वो नीले सपने, कोहरे से ढकी वादी, धुंध में गुम कुछ गीले सपने, रैक पर धूल फांकती किताबें, और उनमे दफन मेरे पीले सपने. अपनी ही आँखों में बेगाने, कुछ नए कुछ पुराने, कुछ जाने कुछ अनजाने, सारी रात दिए की तरह टिम टिमाते हैं लडखडाते हैं और फिर संभल जाते हैं एक हलके स्पर्श से बिखर जाते हैं, रात दिन जगती आँखों से देखे जाते हैं ये.... मेरे सपने...............