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मेरे सपने

दालान में बैठ खुद से बतियाते,
पलकों पर मुस्कुराते
रात रानी की तरह खुद पर इतराते,
आँसुओं में डूबते -उतराते,
नींद की देहरी लांघने को छट-पटाते,
आँखों में कैद, बेचैन, पर फड- फडाते
मेरे सपने

गुलाबी रातों के वो नीले सपने,
कोहरे से ढकी वादी,
धुंध में गुम कुछ गीले सपने,
रैक पर धूल फांकती किताबें,
और उनमे दफन मेरे पीले सपने.

अपनी ही आँखों में बेगाने,
कुछ नए कुछ पुराने,
कुछ जाने कुछ अनजाने,
सारी रात दिए की तरह टिम टिमाते हैं
लडखडाते हैं और फिर संभल जाते हैं
एक हलके स्पर्श से बिखर जाते हैं,
रात दिन जगती आँखों से देखे जाते हैं
ये.... मेरे सपने...............

टिप्पणियाँ

Nikki ने कहा…
i hope ur dreams do come true...
n i really apologise dat i cudnt listen during its birth...

teri poem me dum hai
aisa bhi kya gum hai
ye sab sochne k liye
ek zindagi kum hai...

do keep writing such innovative piece...good wrk
allahabadi andaaz ने कहा…
बेहतरीन लफ़्ज़ अदाएगी....! आगे क्या लिखूं... सिर्फ इतना ही कि... हर पल में बीता समय, पर समय में बीतूं न मैं ! हर पल देखिए नए सपने... नई उम्मीदे...! नई पोस्ट का इंतज़ार रहेगा।
Rahul Ranjan Rai ने कहा…
हर पल में बीता समय, पर समय में बीतूं न मैं!

धन्यवाद !
और क्या कहे.....
आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया!.

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