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अप्रैल, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

A few lines from my first story............

बहुत खुश थी वो ! इतना खुश कभी नही देखा था उसे, मुस्कुराने लगा निहार मगर दिल था जो बैठा ही जा रहा था....... "कहते हैं जब प्यार हो जाए तो दुनिया ख़ूबसूरत नज़र आती है, हर पल एक नई खुशियों की सौगात लती है मगर यहाँ तो ..... सब की खुशी मे खुश रहने वाला इन्सान ,जिसके लिए जिंदगी हमेश ही कुछ न कुछ ऐसी सौगात हमेशा ही लाती है जो हमारे लबों पर muskuraahat ला सके..... आज जिससे प्यार करता है उसी के खुशी से दूखी था ! घिन आने लगी थी उसे अपने आप से....... सच मे निहार बदल गया था.... " "ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली थी, निहार खिड़की से बाहर देख रहा था... बगल की पटरी पर दौड़ती हुई ट्रेन की आवाज़ ने चौका दिया उसे ... जाने कब झपकी लग गई थी ... एक काफ़ी ले फिर से बाहर देखने लगा.... समानांतर गुजरती हुई रेल की पटरियां.... या निहार और निहारिका? शायद ... नही यकीनन ये तो यही दोनों हो सकते थे..... जितने पास उतने ही दूर.... " "सोच रहा था उसे हमेशा consolation prize यानि सांत्वना पुरस्कार ही क्यो मिलता है..... स्कूल के quize , ..........................and last but not the least the consolation prize