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फ़रवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

एक मुलाक़ात....

कल सपने में मिली थी वो.. मेरी कल्पनाओं से परे.. आँखों में हंसी सपने भरे.. चहरे पर मुस्कराहट लिए... पग-२ खुशियों की आहट लिए.. हर हंसीं चहरे से हंसीं... नूतन नवीं... हैरान परेशां मैं.. उसकी आँखों में झाँक रहा था.. मंत्र मुग्ध, सम्मोहित सा, उसके चहरे को ताक रहा था.. बढ़ा हांथों को उसने मेरे चहरे को छुआ.. एक सिहरन सी हुई बदन में... दर्द मिट से गए.... लगा यूँ भगवन ने खुद ही दी है एक दुआ... कौन हो तुम ? पूछा मैंने.. पलकें झपका.. होठो को कर गोल.. बोली ज़िन्दगी हूँ मैं.... ज़िन्दगी.... चौका था मैं उस बात पर.... अगर तुम ज़िन्दगी हो तो  वो कौन है जिसे मैं जानता हूँ... जीता आ रहा हूँ जिसके साथ, आज तक जिसे अपना मानता हूँ? तू पागल है बोली वो... वो भी मैं ही हूँ... पर तुने बस मेरे एक रूप को चुना है  जीवन की अपनी इबारत उस रूप से बुना है... तू बरसों पहले के वक़्त में रुक गया है.. तन कर खड़ा होना था जहाँ वहीँ झुक गया है.... उठ, आगे बढ़, उंगली थाम मेरे साथ चल... जिसको तू जी रहा है वो आज नहीं, है तेरा कल... तू काँटों में क्यों में क्यों उलझा पड़ा है.... गुलाब देख.... यादो