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जुलाई, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

खून ...........(लधु कथा )

साला , madhadchod ... हरामी सूअर की औलाद............गालियाँ मध्धम होती गई..... चिलचिलाती धूप हरी राम को वापस वर्तमान में ले आई ... पसीने की वज़ह से बदन से चिपक गए कुर्ते को हाथों से शरीर से अलग करने लगा मगर कुर्ता तो फेविकोल की भांती चिपका पड़ा था ....अभी तो ३ ही बजाए थे घड़ी ने.... सड़क के किनारे नीम के पेड़ के छाव में बैठा गया.... दिल घर जाने को बेकरार था मगर ..ना जाने कितने ही सवाल उसके आने के इन्तिज़ार में खड़े होंगे मोहल्ले में.... बात सिर्फ़ मोहाल्ले के लोगों की होती तो नही डरता दिन में जाने से .. मगर गोलू के सवालों का क्या जबाब देगा? पापा पापा क्या अपने ४ लोगों को मार डाला है, अपनी बस से कुचल... किसने बोला तुझसे ये... गला घोंट दूंगा साले का....... जो मेरे बेटे को अनाप सनाप पट्टी पढाएगा....किस-किस का गला घोटोगे तुम.... मेरी किस्मत ही फूटी थी जो शादी की तुम से... पापा तो संदीप से शादी करा रहे थे delhi पुलिस में था... उससे शादी होती तो ये बार बार जेल में नही आना पड़ता .. आती भी तो एक पुलिस वाले की बीबी बन .. एक सजायाफ्ता कैदी से मिलने नही..... ३ साल में दूसरी बार सज़ा कट रहे हो.........