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जुलाई, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सवा रुपये

"............... वो भिखारी रोज सुबह अपने 'काम' पर निकल जाता था...दिन भर भीख मांगता मगर उसके हिस्से सिर्फ सवा रुपये ही आते.. वो लाख कोशिश करे मगर वह सवा रुपये से ज्यादा कभी नहीं कमा पता... अधिक पैसे के लालच में उसने अब रात को भी भीख मांगना शुरू कर दिया.. मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात... शायद उसकी किस्मत में सिर्फ सवा रुपये ही थे....उकता कर उसने एक दिन सोचा कि वह अपना समय व्यर्थ में गवां रहा है. अतः उसने एक फैसला किया कि जब सवा रुपये ही कमाने हैं तो इतनी मगजमारी क्यों? अब वह थोड़ी देर ही भीख मांगेगा.... जब वह भीख मांगने घर से निकला तो सामने से गुजरते हुए पहले सख्श ने ही उसे सवा रुपये दे दिया.. वो उतने पैसे ले घर आ गया.. उस रोज के बाद वह दिन भर आराम करता.. जब मन होता तब बाहर निकालता और सवा रुपये ले घर लौट आता.... " इतना कह ऑफिस के दद्दू धीरे से मुस्कुराये.... और फिर बोले.. " निहार बेटा इतनी भागम-भाग कहे को? अगर काम के हिसाब से पैसे मिलते तो गधा पशुओं का धन कुबेर होता.... बेटा लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है.. उल्लू.... अतः लक्ष्मी सिर्फ रात को बाहर निकलती हैं

आहुति

यह कोई नई बात नहीं थी उसके लिए .... यह तो रोज का काम था उसका .... दिन को शाम का पैबंद लगा .. रात से जोड़ देता था ... रात आती तो तकिये के नीचे छुपाए हुये अपने सपने को आँखों में डाल लेता ... और फिर वही से आगे देखना शुरू करता जहाँ पिछले रात छोड़ी होती थी .... न जाने वह ऐसा कब से करता आया था ..... अपनी उम्र का तमाम हिस्सा , उसने ऐसे ही काटा था .... मगर ......... उस रोज .. आदतन दिन को शाम का पैबंद लगा .. रात से जोड़ा .... मगर आज सपनों की दुनिया में जाने की ख्वाहिश नहीं थी उसे ....- यंत्रवत उसने सूरज को बुझाया और रात्रि को आने का निमंत्रण भेजा .... मगर रात आई नहीं और शाम में उसकी ज़िंदगी उलझ कर रह गई ..... आँखों में कैद सपने भड़कने लगे .. कभी शूल से चूभे , तो कभी शोलों की तरह भड़कने लगे .... शाम लावारिस सी नज़र आई .... उसने भरमाया अपने मन को कई बार .... पर संध्या की यह झलक उसके बावरे मन को रास न आई .... सूरज बुझाते वक़्त थोड़ी सी