"............... वो भिखारी रोज सुबह अपने 'काम' पर निकल जाता था...दिन भर भीख मांगता मगर उसके हिस्से सिर्फ सवा रुपये ही आते.. वो लाख कोशिश करे मगर वह सवा रुपये से ज्यादा कभी नहीं कमा पता... अधिक पैसे के लालच में उसने अब रात को भी भीख मांगना शुरू कर दिया.. मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात... शायद उसकी किस्मत में सिर्फ सवा रुपये ही थे....उकता कर उसने एक दिन सोचा कि वह अपना समय व्यर्थ में गवां रहा है. अतः उसने एक फैसला किया कि जब सवा रुपये ही कमाने हैं तो इतनी मगजमारी क्यों? अब वह थोड़ी देर ही भीख मांगेगा.... जब वह भीख मांगने घर से निकला तो सामने से गुजरते हुए पहले सख्श ने ही उसे सवा रुपये दे दिया.. वो उतने पैसे ले घर आ गया.. उस रोज के बाद वह दिन भर आराम करता.. जब मन होता तब बाहर निकालता और सवा रुपये ले घर लौट आता.... " इतना कह ऑफिस के दद्दू धीरे से मुस्कुराये.... और फिर बोले.. " निहार बेटा इतनी भागम-भाग कहे को? अगर काम के हिसाब से पैसे मिलते तो गधा पशुओं का धन कुबेर होता.... बेटा लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है.. उल्लू.... अतः लक्ष्मी सिर्फ रात को बाहर निकलती हैं .. दिन के उजाले में नहीं..". यह कह कर दद्दू ने निहार की पीठ थपथपाई और बाहर निकल गए...
निहार ने एक गहरी साँस ली... उसे एक गुरु मंत्र मिल गया था... दद्दू के जाते ही उसने लैपटॉप खोला और ताश खेलने लगा.... उस रोज उसका काम ख़त्म नहीं हुआ.. काम में मन ही कहाँ था उसका... देर रात तक वह ऑफिस में ही बैठा रहा... उस दिन के बाद वह रोज ऐसा ही करता.. दिन भर गेम खेलता, शाम होते ही काम करने लगता , और देर रात को घर जाता. एक रोज जब वह ऑफिस पंहुचा तो सारे स्टाफ के सामने उसे उसके बॉस ने बुलाया.. और बोले..." i love his dedication towards work... it would not t take long for him to fill my shoes... जब भी देखता हूँ इसे , मुझे अपने पुराने दिन याद आते हैं ..... आप लोग इससे कुछ सीखिए..." इतना कह बॉस ने निहार की पीठ थपथपाई और चले गए... अपना सीना फुला गर्दन उठा निहार अपने सीट पर आ कर बैठ गया.. दद्दू ने उसने देख आंख मारी.. वह मुस्कुराया.. अब वह गधा जो नहीं रहा.... जब सवा रुपये ही कमाने हैं तो..........................
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