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चाय गिरा एक पन्ना...



ऑफिस में बैठे बैठे कुछ वक़्त मिल गया... या यूँ कहूँ तो मैंने कुछ वक़्त चुरा लिया...कुछ लिखने की सोची.... घन्टों लम्बी मत्थापच्ची .. भीर कुछ नहीं समझ आया... लगा लेखनी पर धूल जम आई है.. देखा तो पाया धूल तो मेरी टेबल पर भी जम गई थी..कम ही पलट कर देखता हूँ ना पलट कर टेबल पर बिखरे पन्नों को... लोग भी कहते हैं रहने दो.. इसे देख writer वाली feel आती है... तो ऐसे ही छोड़ देता हूँ.. ज़िन्दगी की तरह पन्ने ही  बिखरे हों तो कागज़ के पन्नो के बिखरने से फर्क ही क्या पड़ता है.... पर आज का दिन कुछ और ही था... आज धूल को जाना ही था.... एक-२ कर ... परत-दर-परत धूल हटता गया... टेबल पर बिखरे स्क्रिप्ट्स के बिच एक पन्ना हाथ लग गया...देख चेहरे पर मुस्कान बिखर गई.... सफाई छोड़... पन्ने की खूबसूरती में खो गया...
 चाय गिरी थी ना तुमने उस दिन... टेबल पर... शायद ये भी उस सुनामी की चपेट में आ गया होगा... याद हैं ना उस रोज वो कांच का कप कैसे तुम्हारे हाथों में आते ही कैसे अस्तित्व हीन हो बैठा .. मेरी ही तरह... और.......
 वो पन्ना बड़ा ही खुबसूरत लगा ..Biased हूँ ना...... शायद obsession है .... तुम्हारी हर चीज ही खुबसूरत जो लगाती है मुझे... आदत जो हो गई है तुम्हारी..... पन्ने पर छलक आई चाय अपने होने का निशाँ छोड़ गई है.... कभी तुम्हारी हथेली पर लिखना अच्छा लगता था ... आज तुम्हारे पन्ने पर लिखने बैठा हूं...यूँ ही... निरर्थक ...
 वैसे आज मेरे स्वीट नवम्बर का आखिरी दिन है....शायद ये आखिरी नवम्बर भी हो तुम्हारे साथ ...... अगला नवम्बर आयेगा इसमे तो कोई दो राय नहीं .... तुम्हारी भी ज़िन्दगी में.... मेरी भी ज़िन्दगी में..... पर तब तक इसके मायने अलग ही होंगे .... दोनों के लिए..... बिलकुल अलग.... आखिर अब हमारे रस्ते जो जुदा ठहरे.... मैं जनता हूँ मैं अगले नवम्बर में कहाँ होऊंगा ... पर तुमवो तो अभी तुम्हे भी नहीं पता....पर यह बात लिखते लिखते मैं एक स्टार बना रहा हूँ... तुम्हारी तरह... जो तुम अपनी हर बात पूरी कर कहते थे Terms & Conditions...
 नवम्बर तुम्हारी भाषा में 'My Fruitful November' अब बस कुछ ही घंटों का ही मेहमान है... पलट कर कितना भी देख लूँ .. लौट कर नहीं आयेगा...शायद तुम्हारी तरह.... तुम्हारा कहना गलत नहीं है... नवम्बर Fruitful  तो हमेशा ही रहा है मेरे लिए... इस बार मुझे खाली हाँथ छोड़ कैसे जाता.... इस बार मुझे जितना दे कर जा रहा है उतना तो कभी नहीं दिया...शायद उम्मीद से बहुत ज्यादा.... ...कुछ पा कर तो सभी खुश होते हैं...आज हम दोनों ही खुश है ना....  तुम कुछ पा कर बहुत खुश हो... और मैं... हूँ ना.. कुछ गवां  पहली बार ख़ुशी मिली है.... एक अभूतपूर्व आनंद.... नवम्बर की यह आखिरी शाम एक मुस्कराहट भेट कर जाना चाहती थी..... सो दिया भी ....
अब मुझे अगले नवम्बर का इन्तिज़ार है... शायद तुम्हे भी हो..... कम से कम ये तो जरुर जानना चाहोगे ना कि अगला नवम्बर क्या सौगात लायेगा मेरे लिए...वैसे तुमसे बिना पूछे .. एक टूटी, बंद पड़ी घडी.. जिसके बंद होते ही मेरे लिए वक़्त वही ठहर गया था ..और तुम आगे निकल गए थे.. बहुत आगे.. मेरी पहुँच से दूर...., एक इयर फोन, एक mp३ प्लयेर.. कुछ फिल्मो के टिकट  जो हमने साथ देखे थे कभी... कुछ एक नवम्बर, अनगिनत सुखद-दुखद यादें..कुछ पल... और ये चाय गिरा पन्ना चुरा कर पास रख लिया है..... जो शायद तुम्हारे किसी काम न आयें... पर मेरे लिए इनके मायने .... तुम्हारे समझ से परे हैं... 
वैसे तुम बातों को जल्दी भूल जाते हो... पर यादों के दरीचों के बीच कोई ऐसी लकीर जरुर होगी जो मैंने उकेरी होगी.... याद करना .... बुरा नहीं लगेगा....
Terms & Conditions...
एक पागल 
     

टिप्पणियाँ

कुछेक जुडी यादें नवम्बर की याद आ गयी आपके इस पन्ने के साथ!
nupur ने कहा…
b'ful...:)
Rahul Ranjan Rai ने कहा…
Thnks vandana 4 ur visit....

thanks nupur :)
gauri ने कहा…
ye bhi acchi lagi :)

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  यूं तो साल दर साल, महीने दर महीने इसे पलट दिया जाता है, मगर कभी- वक्त ठहर सा जाता है, मानो calendar Freez कर दिया गया हो. ऐसा ही कुछ हुआ था हम तुम अपने पराए सब के सब रुक गए थे.  देश रुक गया था। कितने दिन से प्लानिग कर रहे थे हम, एक महीने पहले ही ले आया था वो pregnancy kit उसी दिन तो पता चला था कि हम अब मां बाप बनने वाले हैं। मैं तुरन्त घर phone कर बताने वाला था जब बीबी ने यह कह रोक दिया कि एक बार श्योर हो लेते हैं, तब बताना, कहीं false positive हुआ तो मज़ाक बन जाएगे। रुक गया, कौन जानता था कि बस कुछ देर और यह देश भी रुकने वाला है। शाम होते ही मोदी जी की  आवाज़ ने अफरा तफरी मचा दी Lockdown इस शब्द से रूबरू हुआ था , मैं भी और अपना देश भी। कौन जानता था कि आने वाले दिन कितने मुश्किल होने वाले हैं। राशन की दुकान पर सैकड़ो लोग खडे थे। बहुत कुछ लाना था, मगर बस 5 Kg चावल ही हाथ लगा। मायूस सा घर लौटा था।        7 दिन हो गए थे, राशन की दुकान कभी खुलती तो कभी बन्द ।  4-5दिन बितते बीतते दुध मिलाने लगा था। सातवें दिन जब दूसरा test भी Positive आया तो घर में बता दिया था कि अब हम दो से तीन हो रहे हैं

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बस यूं ही !

1) कभी यहाँ कभी वहाँ, कभी इधर कभी उधर, हवा के झोंकों के साथ, सूखे पत्ते की मानिंद, काटी थी डोर मेरी साँसों की, अपनी दांतों से, किसी ने एक रोज!   2) सिगरेट जला, अपने होठों से लगाया ही था, कि उस पे रेंगती चींटी से बोशा मिला,ज़ुदा हो ज़मीन पर जा गिरी सिगरेट, कहीं तुम भी उस रोज कोई चींटी तो नहीं ले आए थे अपने अधरों पे, जो..........   3) नमी है हवा में, दीवारों में है सीलन, धूप कमरे तक पहुचती नहीं … कितना भी सुखाओ, खमबख्त फंफूंद लग ही जाती है, यादों में!