अंगने में एक सपना खिला है,
आज मैं खुश हूँ,
दूर कहीं वो जूही की
कलि मुस्काई होगी..
छिटकी होगी चांदनी छत पे
चाँद को देखा होगा 'उसने'
शर्माया होगा चाँद ,
उसे छुपाने कोई बदरिया आई होगी.
हवा ने कुछ कहा होगा,
हौले से उस रुख को छुआ होगा
बिखर गयी होगी लाली उसके चहरे पर,
शर्मा कर उसने अपनी पलकें झुकाई होगी..
खोला होगा उसने
जुल्फों को अपनी
चाँदी सी इस रात में
अंधियारी घिर आई होगी..
अब महक उठा है
मेरा कमर मोगरे जैसा
चहका सा है मंजर
शायद उसकी चुनरिया लहराई होगी...
सुनता हूँ सायों की बातें मैं
अल्ह्हड़, शोख, चंचल, इठलाता
इतराता गुजरा है एक साया घर से
शायद उसकी परछाई होगी...
जमा किया होगा उसने
खामोश गुफ्तगू के परतों को,
सितारों से भरी महफ़िल में
बिखरी एक तन्हाई होगी.
झांकते होंगे एक दुसरे की आँखों
में बेहिस, अधूरी होंगी बातें,
रात अभी गयी भी न होगी
कि भोर आई होगी .........
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में बेहिस, अधूरी होंगी बातें,
रात अभी गयी भी न होगी
कि भोर आई होगी .....वाह बहुत खूब!