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अंगूर खट्टे हैं-4

लोमडी की आँखें ... या निहार की आँखें....... ... आँखें जो बिन कहे सब कुछ कह जायें....... आँखे जिसने कभी भी निहारिका से झूठ नही बोला........ निहार की ही हो सकती हैं ये आँखें ........... और इन आंखों ने देखते देखते उसे माज़ी (अतीत) के हवाले कर दिया... याद आ गया वो दिन जब वह निहार से मिली थी....... .उस दिन काल सेंटर जाने का मन बिल्कुल ही नही था। मगर जाना ही पडा... सुबह घर पहुचते ही अनिकेत का कॉल ... लडाई... फिर पुरे दिन सो भी नही सकी ... शाम को ओफ्फिस ॥ वही रोज की कहानी .... सर दर्द से फटा जा रहा था ... काम छोड़ .... बहार निकल गई, कॉरिडोर तो पुरा सिगरेट के धुएं से भरा था .. 'पता नही लोग सिगरेट पिने आते हैं या काम करने ' ........... कैंटीन में जा कर बैठ गई.. अपने और अनिकेत के रिश्ते के बारे में सोचने लगी ... न जाने किस की नज़र लग गई थी....वह ग़लत नही थी.. अनिकेत भी ग़लत नही था अगर उसकी माने तो.. फिर ग़लत कौन था...और ग़लत क्या था.. ..अब उन्हें एक दुसरे की उन्ही आदतों से चिड होने लगी थी जिन पर कभी मर मिटते थे.. आज-कल उसे कोई भी वज़ह नही नज़र नही आ रही थी जिसकी वजह से दोनों साथ रहें .. फिर भी साथ क्यो हैं? .. एक आदत एक दुसरे के साथ की.. या कुछ और.. अगर यह आदत है तो फिर एक दूसरे की आदतों से ही परेशानी क्यो है..? स्कूल के दिन याद आ रहे थे .. कितने अच्छे थे.. कम से कम future , career ... इनका टेंशन तो नही होता था... या इन बातों को ले कर कभी भी लडाई तो नही होती थी.. स्कूल जाते वक्त नुक्कड़ पर बजाते गाने याद आ रहे थे.. .. रोज सुबह की वह बेकरारी की आज कौन सा गाना बजाय जाएगा उसके लिए.. सुबह अनिकेत ना जाने कब से खड़ा रहता था वहां अपनी साइकिल ले.. शायद ही कभी हुआ जब उसे वहां नही पाया हो.. कितना अजीब लगता था जब उसे नही देखती थी वहां ... वह पहली बारिश.. जब सावन बरसे तरसे दिल .... बजाय गया था... कितना भीगे थे वो दोनों उस बरसात में.... आज भी बारिश हुई थी ......और आज भी भीगी थी ......आसूओं के सैलाब में.......

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
At last Aapne himmat jutayi ise pendown karne ki.Simultaniously start preparing the screenplay also. Coz u know.... Ultimately we have to capture it in our Camera also.
बेनामी ने कहा…
आंसुओं की बात कयों करते हो
हंसी खंशी की बातें क्‍या कम पड़ रही हैं
ब्‍लोगल वार्मिंग में आपका स्‍वागत है
Amit K Sagar ने कहा…
रोचक. लिखते रहिये. शुभकामनायें.
---
उल्टा तीर
Raji Chandrasekhar ने कहा…
स्वागत है, आप का ।
मैं मलयलम का एक ब्लोगर, थोड़ा थोड़ा हिन्दी में भी ।
बेनामी ने कहा…
:)

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  यूं तो साल दर साल, महीने दर महीने इसे पलट दिया जाता है, मगर कभी- वक्त ठहर सा जाता है, मानो calendar Freez कर दिया गया हो. ऐसा ही कुछ हुआ था हम तुम अपने पराए सब के सब रुक गए थे.  देश रुक गया था। कितने दिन से प्लानिग कर रहे थे हम, एक महीने पहले ही ले आया था वो pregnancy kit उसी दिन तो पता चला था कि हम अब मां बाप बनने वाले हैं। मैं तुरन्त घर phone कर बताने वाला था जब बीबी ने यह कह रोक दिया कि एक बार श्योर हो लेते हैं, तब बताना, कहीं false positive हुआ तो मज़ाक बन जाएगे। रुक गया, कौन जानता था कि बस कुछ देर और यह देश भी रुकने वाला है। शाम होते ही मोदी जी की  आवाज़ ने अफरा तफरी मचा दी Lockdown इस शब्द से रूबरू हुआ था , मैं भी और अपना देश भी। कौन जानता था कि आने वाले दिन कितने मुश्किल होने वाले हैं। राशन की दुकान पर सैकड़ो लोग खडे थे। बहुत कुछ लाना था, मगर बस 5 Kg चावल ही हाथ लगा। मायूस सा घर लौटा था।        7 दिन हो गए थे, राशन की दुकान कभी खुलती तो कभी बन्द ।  4-5दिन बितते बीतते दुध मिलाने लगा था। सातवें दिन जब दूसरा test भी Positive आया तो घर में बता दिया था कि अब हम दो से तीन हो रहे हैं

बस यूं ही !

1) कभी यहाँ कभी वहाँ, कभी इधर कभी उधर, हवा के झोंकों के साथ, सूखे पत्ते की मानिंद, काटी थी डोर मेरी साँसों की, अपनी दांतों से, किसी ने एक रोज!   2) सिगरेट जला, अपने होठों से लगाया ही था, कि उस पे रेंगती चींटी से बोशा मिला,ज़ुदा हो ज़मीन पर जा गिरी सिगरेट, कहीं तुम भी उस रोज कोई चींटी तो नहीं ले आए थे अपने अधरों पे, जो..........   3) नमी है हवा में, दीवारों में है सीलन, धूप कमरे तक पहुचती नहीं … कितना भी सुखाओ, खमबख्त फंफूंद लग ही जाती है, यादों में!