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अंगूर खट्टे हैं....3

आँखें ठहर सी गई उस पेंटिंग पर .... पेड़ के नीचे खड़ी लोमड़ी.... अंगूर के गुच्छों को एक टक देखती लोमडी की आँखें ... थोडी अलसाई .. थोडी नशीली ... थोडी नींद से बोझिल आँखें निहार के अलावा किसकी हो सकती थी........
"तो तुम्हे सच में ये लगता है की मुझे तुमसे एक दिन प्यार हो जाएगा?" IIT कैंटीन में बैठे निहारिका ने निहार से पूछा था..
"हाँ"
"हा हा हा हा ... तुम जागते हुए सपने देखना कब छोड़ोगे?"
"यह हकीकत है "
"ओह रिअली ! यू मीन आई विल फाल इन लव विद यू?"
" हाँ"
" हे हे हे... " निहारिका की हसी रुक ही नही रही थी.. " मजाक तुम से अच्छा कौन करेगा..?"
"मजाक नही है यह... प्यार करने लगोगी तुम मुझसे.."
"नो वे"
"शर्त लगा रहे हो?"
"हार जाओगे .."
" मुझे हारना नही आता "
" तो अब सीख जाओगे"
" तुम शर्त लगा रहे हो ?"
"अब हारने को कोई मरा जा रहा है तो मुझे क्या! डन!.."
" वह तो वक्त ही बताएगा ..."
" तुम और तुम्हारा optimism... ! वैसे तुम्हे पता भी है कि प्यार किसे कहते हैं ?"
बस एक खामोश मुस्कराहट थी निहार के चहरे पर..
" मैं और अनिकेत पिछले १० सालों से एक दूसरे को प्यार करते हैं.. उसके अलावा किसी और का ख्याल आ ही नही सकता मेरे मन में..!
" अच्छा जी ! तो आप रात के ९ बजे अनिकेत से छुप मेरे साथ इस कैंटीन में क्या कर रहे हो...?"
" क्योकि तुम मेरे दोस्त हो."
"दोस्त तो और भी हैं फिर ..."
" वह हामारे रिश्ते को नही समझ सकता! उसे तो तुम्हारे नाम से ही चिदहै.."
" हूँ .. तो क्या तुम हामारे रिश्ते को समझते हो.."
दूसरी तरफ़ सिर्फ़ एक खामोशी थी.
"चुप क्यो हो गए?"
"यह बकवास बंद करो तुम ! और ये बात आपने दिमाग से निकल दो तो बेहतर होगा कि मैं तुम्हे एक दोस्त से से कुछ ज्यादा समझती हूँ . यहाँ सिर्फ़ हार ही मिलने वाली है तुम्हे !" आवाज़ की चिड-चिदाहट साफ पता चल रही थी ...
"जीत तो सिर्फ़ निहार की ही होगी."
"ओ.के. सपने देखते रहो कि . तुम जीत जाओगे . और मेरी शादी तुम से हो जायेगी..है ना?"
"तुमसे शादी करनी भी नही है मुझे .."
"हा हा हा हा.." अब उसकी हंसी रुकने का नाम ने ले रही थी.......... तुमसे शादी करनी भी नही.... हे........हूँ अंगूर खट्टे हैं ना?"

सिर्फ़ मुस्करा कर रह गया निहार.
"अंगूर खट्टे हैं ना? हे हे हे ... तुम नही जीत पाओगे "
" जिंदगी एक अजीब पहेली है मेरे दोस्त! जिसकी कोई शिकस्त हमें जीत से ज्यादा हसीन लगाती है. उस हार का नशा जीत के खुमार से ज्यादा होता है !"
"हूँ?"
"तुम जीते तब भी मेरी ही जीत होगी, अगर मैं जीता तो कहना ही क्या..."
"मेरी जीत मे तुम्हारी जीत कैसे हो सकती है.. ?"
" क्योकि प्यार में कभी हार नही होती! तुम्हारी जीत यानि कि उसकी जीत जिससे मैं प्यार करता हूँ. और मैं जीता तो... अब बताओ मैं हारा कहाँ?
उसके चहरे को गौर से देखे जा रही थी निहारिका और वो अपने धुन मे बोले जा रहा था.
"वैसे मैं ये दुआ करूंगा कि शिकस्त मेरे ही हिस्से आए !"
" भला वो क्यो?"
तुम्हे हारते हुए नही देख पाउंगा!"
मन मे आया एक बार फिर कहे "अंगूर खट्टे हैं" मगर कुछ कह नही पाई..
"वैसे सारी रात यही गुजरने का इरादा है क्या किसी का?"
चुप चाप उठ उसके पीछे चल पड़ी.. उनके बीच आ चुकी खामोशी ने वार्तालाप का अंत कर दिया था..
धडाम -२ हवा से बजाते खिड़की के पल्ले ने निहारी को वर्तमान मे लौटने पर मजबूर किया.. उसे बंद कर दुबारा पलंग पर बैठ गयी! और नज़रें दुबारा पेंटिंग का दीदार करने लगी..

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
badiya uttam ati uttam

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  यूं तो साल दर साल, महीने दर महीने इसे पलट दिया जाता है, मगर कभी- वक्त ठहर सा जाता है, मानो calendar Freez कर दिया गया हो. ऐसा ही कुछ हुआ था हम तुम अपने पराए सब के सब रुक गए थे.  देश रुक गया था। कितने दिन से प्लानिग कर रहे थे हम, एक महीने पहले ही ले आया था वो pregnancy kit उसी दिन तो पता चला था कि हम अब मां बाप बनने वाले हैं। मैं तुरन्त घर phone कर बताने वाला था जब बीबी ने यह कह रोक दिया कि एक बार श्योर हो लेते हैं, तब बताना, कहीं false positive हुआ तो मज़ाक बन जाएगे। रुक गया, कौन जानता था कि बस कुछ देर और यह देश भी रुकने वाला है। शाम होते ही मोदी जी की  आवाज़ ने अफरा तफरी मचा दी Lockdown इस शब्द से रूबरू हुआ था , मैं भी और अपना देश भी। कौन जानता था कि आने वाले दिन कितने मुश्किल होने वाले हैं। राशन की दुकान पर सैकड़ो लोग खडे थे। बहुत कुछ लाना था, मगर बस 5 Kg चावल ही हाथ लगा। मायूस सा घर लौटा था।        7 दिन हो गए थे, राशन की दुकान कभी खुलती तो कभी बन्द ।  4-5दिन बितते बीतते दुध मिलाने लगा था। सातवें दिन जब दूसरा test भी Positive आया तो घर में बता दिया था कि अब हम दो से तीन हो रहे हैं

अंगूर खट्टे हैं-4

लोमडी की आँखें ... या निहार की आँखें....... ... आँखें जो बिन कहे सब कुछ कह जायें....... आँखे जिसने कभी भी निहारिका से झूठ नही बोला........ निहार की ही हो सकती हैं ये आँखें ........... और इन आंखों ने देखते देखते उसे माज़ी (अतीत) के हवाले कर दिया... याद आ गया वो दिन जब वह निहार से मिली थी....... .उस दिन काल सेंटर जाने का मन बिल्कुल ही नही था। मगर जाना ही पडा... सुबह घर पहुचते ही अनिकेत का कॉल ... लडाई... फिर पुरे दिन सो भी नही सकी ... शाम को ओफ्फिस ॥ वही रोज की कहानी .... सर दर्द से फटा जा रहा था ... काम छोड़ .... बहार निकल गई, कॉरिडोर तो पुरा सिगरेट के धुएं से भरा था .. 'पता नही लोग सिगरेट पिने आते हैं या काम करने ' ........... कैंटीन में जा कर बैठ गई.. अपने और अनिकेत के रिश्ते के बारे में सोचने लगी ... न जाने किस की नज़र लग गई थी....वह ग़लत नही थी.. अनिकेत भी ग़लत नही था अगर उसकी माने तो.. फिर ग़लत कौन था...और ग़लत क्या था.. ..अब उन्हें एक दुसरे की उन्ही आदतों से चिड होने लगी थी जिन पर कभी मर मिटते थे.. आज-कल उसे कोई भी वज़ह नही नज़र नही आ रही थी जिसकी वजह से दोनों साथ रहें .. फिर

बस यूं ही !

1) कभी यहाँ कभी वहाँ, कभी इधर कभी उधर, हवा के झोंकों के साथ, सूखे पत्ते की मानिंद, काटी थी डोर मेरी साँसों की, अपनी दांतों से, किसी ने एक रोज!   2) सिगरेट जला, अपने होठों से लगाया ही था, कि उस पे रेंगती चींटी से बोशा मिला,ज़ुदा हो ज़मीन पर जा गिरी सिगरेट, कहीं तुम भी उस रोज कोई चींटी तो नहीं ले आए थे अपने अधरों पे, जो..........   3) नमी है हवा में, दीवारों में है सीलन, धूप कमरे तक पहुचती नहीं … कितना भी सुखाओ, खमबख्त फंफूंद लग ही जाती है, यादों में!