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व्यथा

न थकन, न चुभन
न शोक, न आह्लाद,
बस चिंतन-मनन कर रहा हूँ.

न विघटन, न विखंडन,
न प्रतिकार,न चित्कार,
बस भावनाओं का दमन कर रहा हूँ.

न शिशिर,न बसंत,
न शीत. न हेमंत,
बस नम आँखों से नमन कर रहा हूँ.

न संशय, न विस्मय
न चिंगारी, न अंगारे
बस दिवा-स्वप्नों का दहन कर रहा हूँ.

न आग, न धुँआ
न कथ, न अकथ
बस मन के उन्मादों का हवन कर रहा हूँ.

टिप्पणियाँ

शानदार अभिव्यक्ति
Udan Tashtari ने कहा…
बहुत उम्दा!!! वाह!
Bibhu Baibhaw ने कहा…
nice..........very deep,
Rahul Ranjan Rai ने कहा…
धन्यवाद... उत्साहवर्धन के लिए....
शब्दों का अनुपम प्रयोग...अद्भुत रचना...वाह...
नीरज

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