सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

काला दिल



सुबह सबेरे चिपका होता है आसमां से यूं,
ज्यो सोते वक़्त, माथे की वह बड़ी सी लाल बिंदी,
आईने से चिपका देती थी, दादी माँ,
बढ़ता, घटता, बढ़ता है,
मिटता है और आ जाता है,
रंग बदलता रहता है,
सुबह, दोपहर, शाम, क्यो?
जलता-2 रहता है,
पर जलता है क्यो तू?
आसमां में मीलों दूर बैठा,
जलन किस बात की है तुझे?
गुबार किस बात का है तेरे दिल में?
क्या धरती ने दिल तोड़ा था तेरा?
या हमसे जलता है तू?
धनक तेरी देख, सोचता हूँ मैं,
हर वक़्त जलते रहने वाले सूरज,
दिल तेरा कितना काला होगा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!


टिप्पणियाँ

virendra sharma ने कहा…

सुबह सबेरे चिपका होता है आसमां से यूं,
ज्यो सोते वक़्त, माथे की वह बड़ी सी लाल बिंदी,........ज्यों
आईने से चिपका देती थी, दादी माँ,
बढ़ता, घटता, बढ़ता है,
मिटता है और आ जाता है,
रंग बदलता रहता है,
सुबह, दोपहर, शाम, क्यो?..........क्यों ........
जलता-2 रहता है,
पर जलता है क्यो तू?.......क्यों ........
आसमां में मीलों दूर बैठा,
जलन किस बात की है तुझे?
गुबार किस बात का है तेरे दिल में?
क्या धरती ने दिल तोड़ा था तेरा?
या हमसे जलता है तू?
धनक तेरी देख, सोचता हूँ मैं,
हर वक़्त जलते रहने वाले सूरज,
दिल तेरा कितना काला होगा !!!!!!!!!!!!!!!!!!!

बढ़िया प्रस्तुति है दिल तो उत्तप्त है इसलिए टी जग उजियारा है .
Unknown ने कहा…
बहुत खूब लिखा है आपने |

नई पोस्ट:-ओ कलम !!

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

चलते -फिरते

१) शाम की लालिमा ओढ़े विशाल व्योम को देखा, रात को जलते बुझते जुगनू से कुछ  सपने, अब आसमान छोटा  और सपने बड़े लगते हैं मुझे!  २)  उसकी आवाज़ वादी में गूंजती रहती है, कहते हैं वो बहुत सुरीला था कभी, पर लोग अब उसे कश्मीर कहते हैं... ३) वो आग जैसी थी, सूरज सी गर्म   उसके एक  इशारे पर हवाएं अपना रुख बदल लेती थी, सुना है कल अपन घर जला बैठी है वो.... ४) बहुत ऊँचा उड़ाती थी वो, आसमान में सुराख़ कर आई, सुना है उस सुराख़ से खून टपकात है उसका....

Calendar

  यूं तो साल दर साल, महीने दर महीने इसे पलट दिया जाता है, मगर कभी- वक्त ठहर सा जाता है, मानो calendar Freez कर दिया गया हो. ऐसा ही कुछ हुआ था हम तुम अपने पराए सब के सब रुक गए थे.  देश रुक गया था। कितने दिन से प्लानिग कर रहे थे हम, एक महीने पहले ही ले आया था वो pregnancy kit उसी दिन तो पता चला था कि हम अब मां बाप बनने वाले हैं। मैं तुरन्त घर phone कर बताने वाला था जब बीबी ने यह कह रोक दिया कि एक बार श्योर हो लेते हैं, तब बताना, कहीं false positive हुआ तो मज़ाक बन जाएगे। रुक गया, कौन जानता था कि बस कुछ देर और यह देश भी रुकने वाला है। शाम होते ही मोदी जी की  आवाज़ ने अफरा तफरी मचा दी Lockdown इस शब्द से रूबरू हुआ था , मैं भी और अपना देश भी। कौन जानता था कि आने वाले दिन कितने मुश्किल होने वाले हैं। राशन की दुकान पर सैकड़ो लोग खडे थे। बहुत कुछ लाना था, मगर बस 5 Kg चावल ही हाथ लगा। मायूस सा घर लौटा था।        7 दिन हो गए थे, राशन की दुकान कभी खुलती तो कभी बन्द ।  4-5दिन बितते बीतते दुध मिलाने लगा था। सातवें दिन जब दूसरा test भी Positive आया तो घर में बता दिया था कि अब हम दो से तीन हो रहे हैं

अंगूर खट्टे हैं-4

लोमडी की आँखें ... या निहार की आँखें....... ... आँखें जो बिन कहे सब कुछ कह जायें....... आँखे जिसने कभी भी निहारिका से झूठ नही बोला........ निहार की ही हो सकती हैं ये आँखें ........... और इन आंखों ने देखते देखते उसे माज़ी (अतीत) के हवाले कर दिया... याद आ गया वो दिन जब वह निहार से मिली थी....... .उस दिन काल सेंटर जाने का मन बिल्कुल ही नही था। मगर जाना ही पडा... सुबह घर पहुचते ही अनिकेत का कॉल ... लडाई... फिर पुरे दिन सो भी नही सकी ... शाम को ओफ्फिस ॥ वही रोज की कहानी .... सर दर्द से फटा जा रहा था ... काम छोड़ .... बहार निकल गई, कॉरिडोर तो पुरा सिगरेट के धुएं से भरा था .. 'पता नही लोग सिगरेट पिने आते हैं या काम करने ' ........... कैंटीन में जा कर बैठ गई.. अपने और अनिकेत के रिश्ते के बारे में सोचने लगी ... न जाने किस की नज़र लग गई थी....वह ग़लत नही थी.. अनिकेत भी ग़लत नही था अगर उसकी माने तो.. फिर ग़लत कौन था...और ग़लत क्या था.. ..अब उन्हें एक दुसरे की उन्ही आदतों से चिड होने लगी थी जिन पर कभी मर मिटते थे.. आज-कल उसे कोई भी वज़ह नही नज़र नही आ रही थी जिसकी वजह से दोनों साथ रहें .. फिर