तुम नहीं थे , मैं खुश रहता था,
तुम कहीं नहीं हो सोच दिल बहल जाता था,
मैं दुखी हो जाऊंगा, जब तुम आओगे
यह सोच अक्सर दहल जाता था.....
ऐसा ही कुछ हुआ भी....
तुम आये और .......
आखिर क्यों....
तुम्हारे होने का एहसास भर
भीतर से गुदगुदा देता था,
दुःख, रंजो-गम, परेशानियों
का वजूद दिल से मिटा देता था...
अब तुम्हारे होने का एहसास
तुम्हे खोने के एहसास से दुखदाई क्यों है?
तुम नहीं होके भी होते थे... अब तुम
हो के भी नहीं हो, फिर अँधेरे में भी
ये परछाई क्यों है....
अब ऐसा क्या बदल गया,
रिश्ते का सूरज साँझ में क्यों ढल गया...
तुम वही हो, मै भी वैसा ही हूँ
बस जज्बात पराये हैं,
वक़्त ये कैसी चाल चल गया,
दिल बुझ गया, अब रातें सुनी हैं,
फिर तुम्हारे आते ही मैं क्यों जल गया?
तुम नहीं होते हो तो
करवटें लेता है वक़्त मेरी ज़िन्दगी में..
तुम आते हो, और तुम्हारे हो कर भी न होने का
सबब पूछते हैं ये गलियां ये मंज़र,
मेरी इस ज़िन्दगी में...
मैं चुपचाप भाग लेता हूँ,
खिडकियों को ढांप देता हूँ,
आईने से ऑंखें नहीं मिला पाता हूँ
तुमसे सामना न हो जाये सोच के
यह घबराता हूँ,
पता नहीं किस से छिप के भाग रहा हूँ
तुमसे या खुद से..?
कहते हैं वक़्त गुज़र जाता है
मगर ख़त्म नहीं होता...
हर रोज आग लगाता हूँ, अपनी आरजू के वृक्ष को मगर
वो ढीन्ठ भस्म नहीं होता!!!!!!!!!!!!!
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