कुछ भी नहीं बदला है
वो तब भी वैसी ही थी
अब भी वैसी ही है
ना बदला है प्यार, नाही दुलार
गलती पर उसकी वो झिड़की
नाही हमारी वो बेवजह की तकरार
जब भी मिलती है
बे वजह लड़ता हूँ
उसकी प्यारी सी डांट के लिए
दिन रात मारता हूँ
जब वो रूठ जाती है तब एक सूनापन
सा नज़र आता है हर जगह
फिर उसे मनाने को
ना जाने कितनी मिन्नतें करता हूँ..
जब भी मुस्कुराया
हंसी उसके लबों पर छाई
चोट मुझे लगी
नम उसकी आँखें हो आयीं
मायूसी ने मुझे घेरा
गम की बदली उसके चेहरे पर छाई/घिर आई
एक अजीब सा सहर है उसकी पनाह में
मायूसी का साया आने से भी घबराता है
हर शिकस्त ने खाया है शिकस्त उस दहलीज पर
उदासी की कोई रेखा छु कर गुजरती नहीं वहाँ से
आँधी में एक सूखे पत्ते की मानिंद
गम भी तेरे साये भर से उड़ जाता है
बचपन में हांथ पकड़ सड़क पार कराया करती थी
अब भी सड़क पार करते वक्त हांथ पकड़ लेती है
पुछो तो कहती है “पहले तुम डर जया करते थे, अब मैं......
गाड़ियों की रफ्तार इतनी तेज़ जो हो गयी है...
कुछ भी नहीं बदला माँ
तू तब भी वैसी ही थी
अब भी वैसी ही है.....
जो बदला है वो वक्त है....
बचपन में जब मुझे सुलाते सुलाते तू सो जया करती थी
तब तेरे काले बलों के बिच सफ़ेद बल गिना करता था...
अब तेरे सफ़ेद बलों में काले बालों के निशां ढूँढता हूँ....
गुजरते वक्त ने पग-दंडियाँ सी बना दी है तेरे चेहरे पे.....फिर भी
तेरी सूरत दुनियाँ मे सबसे हसीं सूरत हुआ करती थी तब ....अब भी है
तेरी हंसी तब भी मेरी ज़िंदगी थी...... अब भी है
ना बदला है तेरा प्यार
नाही तेरा दुलार
तेरी ममता भी वैसी ही है
मेरी खताओं को माफ करने की छमता भी वैसी ही है .....
तेरे दामन में बसाई थी एक दुनिया मैंने
मेरी दुनिया तब भी वहीं थी..................... अब भी वहीं है.......
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