1) कभी यहाँ कभी वहाँ, कभी इधर कभी उधर,
हवा के झोंकों के साथ, सूखे पत्ते की मानिंद,
काटी थी डोर मेरी साँसों की, अपनी दांतों से, किसी ने एक रोज!
2) सिगरेट जला, अपने होठों से लगाया ही था,
कि उस पे रेंगती चींटी से बोशा मिला,ज़ुदा हो ज़मीन पर जा गिरी सिगरेट,
कहीं तुम भी उस रोज कोई चींटी तो नहीं ले आए थे अपने अधरों पे, जो..........
3) नमी है हवा में, दीवारों में है सीलन,
धूप कमरे तक पहुचती नहीं …
कितना भी सुखाओ, खमबख्त फंफूंद लग ही जाती है, यादों में!
हवा के झोंकों के साथ, सूखे पत्ते की मानिंद,
काटी थी डोर मेरी साँसों की, अपनी दांतों से, किसी ने एक रोज!
2) सिगरेट जला, अपने होठों से लगाया ही था,
कि उस पे रेंगती चींटी से बोशा मिला,ज़ुदा हो ज़मीन पर जा गिरी सिगरेट,
कहीं तुम भी उस रोज कोई चींटी तो नहीं ले आए थे अपने अधरों पे, जो..........
3) नमी है हवा में, दीवारों में है सीलन,
धूप कमरे तक पहुचती नहीं …
कितना भी सुखाओ, खमबख्त फंफूंद लग ही जाती है, यादों में!
टिप्पणियाँ