भानु गमन की ओर अग्रसर,
अस्ताचल पर लालिमा प्रखर,
कोलाहल को उतारु खगेन्द्र
छू कर लौटे शिखर-
काट दिवा निर्वासन
अनोखा तुम्हारा प्रपंच,
अनोखा प्रलोभन
ए साँझ.............
बिखरी साँझ किरण,
संध्या आगमन,
तिमिर आह्वान,
दिवाकर अवसान,
सायों का प्रस्थान,
खोलती मेरे यादों की थाती
अकिंचन... ए साँझ....
व्याकुल आने को, शशि स्वार्थी
रोम रोम पुलकित कर,जाते रश्मिरथी
शून्य का विहंगम-दृश्य अलौकिक
मेघों में भरे रंग नैसर्गिक
अनूठी तेरी कुंची, अनूठी ये चित्रकारी..
ए साँझ...
पस्त मन के विचित्र विकृत विचार
हर्षाते सपने आँखों में निराकार
सागर तट पर जब भी सूरज बुझाता हूँ...
कल लौट के आने का
दिनकर का मौन प्रचार
शत-२ सम्मान , शत-२ नमन
ए साँझ....
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