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पहली कविता

कौन था वह जिसने पहली कविता लिखी ....
कोई योगी....या कोई वियोगी.....
किसने पहला गीत लिखा?
क्या ख्याल आया था उस कवि मन में उस रोज ....
जब वह कुछ शब्दों से एक चेहरा उकेर रहा था....
लिखने का ख्याल आया कैसे उस मन में?
कहीं तुम्हारे बारे में तो नहीं सोच रहा था वह?
या कहीं , किसी रोज ,
एक छत पर आधी रात गए... तारे गिनते वक़्त .....
तुमने उसका हाथ थामा था...
घंटों गुफ्तगू की....
कुछ कहा...
कुछ सुना....
आइसक्रीम खाते-2 तुमने अपने चेहरे पर गिर आई
स्याह सी ज़ुल्फें हटायी......
मुस्कुराते हुये उस पागल ने देखा था तुम्हें....
फिर सुबह होते ही किसी पत्ते ...... किसी पत्थर पर
तुम्हें लिखा होगा.....
सोचता हूँ अक्सर मैं.... शायद ऐसे ही कहीं, किसी रोज, दुनिया
के किसी कोने में कोई कविता जन्मी होगी ... कोई गीत उपजा होगा...

राहुल रंजन  

टिप्पणियाँ

Sunil Kumar ने कहा…
आपकी सोंच बिलकुल सही हैं तभी कविता जन्म लेती हैं
कहा नहीं जा सकता-पहली कविता का जन्म कैसे हुआ होगा।

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लड़ाई हुई थी अपनी आँखों की , पहली मुलाक़ात पर , वह बूढ़ा सा बस स्टैंड , मुस्कुराया था देख हमें , जाने कितनी बार मिले थे हम वहाँ , जाने कितने मिले होंगे वहाँ हम जैसे , वह शब्दों की पहली जिरह , या अपने लबों की पहली लड़ाई , सब देखा था उसने , सब सुना था , चुपचाप , खामोशी से , बोला कुछ नहीं। कहा नहीं किसी से , कभी नहीं। कितनी बार तुम्हारे इंतज़ार में , बैठा घंटों , जब तुमने आते-2 देर कर दी। जब कभी नाराज़ हो मुझे छोड़ चली गयी तुम , कई पहर , उंगली थामे उसकी , गोद में बैठा रहा उसके। उसके कंधे पर सर रख के। याद है वहीं कहीं गुमा दिया था तुमने दिल मेरा , हंसा था मेरी बेबसी पर वह , अब वह बूढ़ा स्टैंड वहाँ नहीं रहता , कोई fly over गुजरता है वहाँ से देखा था, जब आया था तुम्हारे शहर पिछली बार। कहीं चला गया होगा वह जगह छोड़ , उस बदलाव के उस दौर में , जब सब बदले थे , मैं , तुम और हमारी दुनियाँ ! अब जो सलामत है वह बस यादें हैं , और कुछ मुट्ठी गुजरा हुआ कल , याद आता है वह दिन, जब तुम्हारा दिल रखने को तुम्हारे नए जूतों की तारीफ की थ