उस रोज तुम्हारी बातों ने मुझे और उलझा कर रख दिया,
पहले ही क्या कम उलझन थी, अपने रिश्ते को ले कर?
हमारा तुम्हार रिश्ता भी कितना उलझा-२ सा है..
बिलकुल तुम्हारे घुंघराले बालों की तरह.
तुम्हारे घुंघराले बाल तुम पर जचते हैं,
और यह घुंघराला सा रिश्ता हम (दोनों) पर..
एक लट सुलझाओ तो दूसरी उलझ पड़ती है..
अपना यह रिश्ता भी तो है कितना अजीब,
कुछ-२ तुम्हारे जैसे,
कुछ-२ मेरे जैसे,
और रिश्तों की भीड़ में सबसे अलग..
एक पागल सा...... अपने आप सा इकलौता .
तुम्हारी उलझी सी उन लटों में हाँथ फिराना
अच्छा लगता था,
अब इस उलझनों से भरे रिश्ते के परतों में
अपनी उंगलियाँ घुमाता रहता हूँ..
जब कभी तुम्हारे बालों को सीधा करता, और
कोई बाल टूटता.. तुम्हारी चीख निकल जाती थी..
अब इस रिश्ते को सीधा करने बैठता हूँ, और
कोई एक बारीक सी डोर टूटती है.. मेरी चीख निकल जाती है..
कल जब तुम्हारी फोटो देखि तो जानाकि तुमने अपनी उलझी लटों को सीधा कर छोड़ा है,
लगा... तुम बदला ले रही हो..
आखिर मैंने भी तो इस रिश्ते को दिखाने को
सीधा रख छोड़ा है..
वैसे मैं इन दोनों कि फितरत से वाकिफ हूँ.
अपन यह रिश्ता और तुम्हारे बाल..
घुंघराले थे, हैं और रहेंगे..!
सुनो..
तुम पर तुम्हारे घुंघराले बाल,
हम(दोनों) पर यह घुंघराला रिश्ता..
अच्छा लगता है!
इन्हें ऐसे ही रहने दो..!!!
यकी न हो तो किसी से भी पूछ लो!
टिप्पणियाँ