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पहले ना था

ये मंजर इतना खामोश सा पहले ना था
तू मेरे पास हो के भी दूर इतना ना था
हर तरफ खुशियाँ ही खुशियाँ हैं,
मगर दिल में ये सूनापन पहले ना था.
तुम्हे याद कर दिल की कली खिल सी उठती थी
आज दिल पे छाया है गुबार, पहले ना था.
करार के इंतज़ार में काटी एक उम्र मैंने,
करार पा बे-करार सा पहले ना था.
उम्मीद का सुर्ख दामन थाम्हे जी रहा था मैं,
मेरी उम्मीदों का दामन ज़र्द सा पहले ना था.
तन्हाईयों में भी कभी तन्हा सा नहीं था मैं,
अपना हो कर भी तू बेगानों सा, पहले ना था.
यूँही कही से आ मुस्कराहट लपेट लेती थी मुझे
खामोश सा अपना मिजाज़ पहले ना था.
ये मंजर इतना खामोश सा पहले ना था
तू मेरे पास हो के भी दूर इतना ना था

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
itss so good,i lik it so muchhh :)
Unknown ने कहा…
it sounds like a song from 'my name is khan'...nice

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Calendar

  यूं तो साल दर साल, महीने दर महीने इसे पलट दिया जाता है, मगर कभी- वक्त ठहर सा जाता है, मानो calendar Freez कर दिया गया हो. ऐसा ही कुछ हुआ था हम तुम अपने पराए सब के सब रुक गए थे.  देश रुक गया था। कितने दिन से प्लानिग कर रहे थे हम, एक महीने पहले ही ले आया था वो pregnancy kit उसी दिन तो पता चला था कि हम अब मां बाप बनने वाले हैं। मैं तुरन्त घर phone कर बताने वाला था जब बीबी ने यह कह रोक दिया कि एक बार श्योर हो लेते हैं, तब बताना, कहीं false positive हुआ तो मज़ाक बन जाएगे। रुक गया, कौन जानता था कि बस कुछ देर और यह देश भी रुकने वाला है। शाम होते ही मोदी जी की  आवाज़ ने अफरा तफरी मचा दी Lockdown इस शब्द से रूबरू हुआ था , मैं भी और अपना देश भी। कौन जानता था कि आने वाले दिन कितने मुश्किल होने वाले हैं। राशन की दुकान पर सैकड़ो लोग खडे थे। बहुत कुछ लाना था, मगर बस 5 Kg चावल ही हाथ लगा। मायूस सा घर लौटा था।        7 दिन हो गए थे, राशन की दुकान कभी खुलती तो कभी बन्द ।  4-5दिन बितते बीतते दुध मिलाने लगा था। सातवें दिन जब दूसरा test भी Positive आया तो घर में बता दिया था कि अब हम दो से तीन हो रहे हैं

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बस यूं ही !

1) कभी यहाँ कभी वहाँ, कभी इधर कभी उधर, हवा के झोंकों के साथ, सूखे पत्ते की मानिंद, काटी थी डोर मेरी साँसों की, अपनी दांतों से, किसी ने एक रोज!   2) सिगरेट जला, अपने होठों से लगाया ही था, कि उस पे रेंगती चींटी से बोशा मिला,ज़ुदा हो ज़मीन पर जा गिरी सिगरेट, कहीं तुम भी उस रोज कोई चींटी तो नहीं ले आए थे अपने अधरों पे, जो..........   3) नमी है हवा में, दीवारों में है सीलन, धूप कमरे तक पहुचती नहीं … कितना भी सुखाओ, खमबख्त फंफूंद लग ही जाती है, यादों में!