सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

खँडहर





गहरे ज़ख्मों को तन से लगाये,
हालाती थपेडों से चोट खाए,
कभी धूल-धूसरित, कभी बरखा में नहाये।

हर-दम सुनता हूँ उन्हें, बाते करते, इधर से आते जाते,
गाते गुन-गुनाते, बुद-बुदाते,
अपने वर्तमान पर अफ़सोस जताते।

कई दौरों के गवाह, कई युगों से मूक दर्शक बन,
धूप में तप, समय की बेदी पर छन,
खड़े हैं सर ऊँचा कर आसमां में, नंगे तन।

कुछ किवन्दन्तियाँ , कुछ जग जाहिर, कुछ जानी-अनजानी,
हर एक ईट, हर एक पत्थर सुनाता है एक कहानी,
कही खरोचों,कहीं ख़राशों, कभी खामोशी की जुबानी।

ये ईमारत और इसकी हर दीवार, वक़्त के साथ बदल जाते हैं,
कुछ खड़े हैं, कुछ गिरते हैं, कुछ शाम के साये में ढल जाते हैं,
शालीनता से मुस्कुराते हैं, अपनी यादों में जल जाते हैं।

गवाही देते रहते हैं अपने गौरवशाली अतीत का,
वक्त के के साथ बदल जाने की, प्रकृति के रीत का,
किसी कोने में कैद नफ़रत तो दिल में दफन प्रीत का,
अपनी हार और काल-चक्र के जीत का।

सोचता हूँ , शायद हर गौरवशाली अतीत का वर्तमान खँडहर ही होता होगा!

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
tootey khwaabon ke manzar pe tera jahan chal diya...
Unknown ने कहा…
gaurav chaddha ka kehna hai -- khandahar batata hai imaarat kabhi badi mazboot thi
Rahul Ranjan Rai ने कहा…
jan ke achha laga tum bhi padhate ho is blog ko!

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Calendar

  यूं तो साल दर साल, महीने दर महीने इसे पलट दिया जाता है, मगर कभी- वक्त ठहर सा जाता है, मानो calendar Freez कर दिया गया हो. ऐसा ही कुछ हुआ था हम तुम अपने पराए सब के सब रुक गए थे.  देश रुक गया था। कितने दिन से प्लानिग कर रहे थे हम, एक महीने पहले ही ले आया था वो pregnancy kit उसी दिन तो पता चला था कि हम अब मां बाप बनने वाले हैं। मैं तुरन्त घर phone कर बताने वाला था जब बीबी ने यह कह रोक दिया कि एक बार श्योर हो लेते हैं, तब बताना, कहीं false positive हुआ तो मज़ाक बन जाएगे। रुक गया, कौन जानता था कि बस कुछ देर और यह देश भी रुकने वाला है। शाम होते ही मोदी जी की  आवाज़ ने अफरा तफरी मचा दी Lockdown इस शब्द से रूबरू हुआ था , मैं भी और अपना देश भी। कौन जानता था कि आने वाले दिन कितने मुश्किल होने वाले हैं। राशन की दुकान पर सैकड़ो लोग खडे थे। बहुत कुछ लाना था, मगर बस 5 Kg चावल ही हाथ लगा। मायूस सा घर लौटा था।        7 दिन हो गए थे, राशन की दुकान कभी खुलती तो कभी बन्द ।  4-5दिन बितते बीतते दुध मिलाने लगा था। सातवें दिन जब दूसरा test भी Positive आया तो घर में बता दिया था कि अब हम दो से तीन हो रहे हैं

बस यूं ही !

1) कभी यहाँ कभी वहाँ, कभी इधर कभी उधर, हवा के झोंकों के साथ, सूखे पत्ते की मानिंद, काटी थी डोर मेरी साँसों की, अपनी दांतों से, किसी ने एक रोज!   2) सिगरेट जला, अपने होठों से लगाया ही था, कि उस पे रेंगती चींटी से बोशा मिला,ज़ुदा हो ज़मीन पर जा गिरी सिगरेट, कहीं तुम भी उस रोज कोई चींटी तो नहीं ले आए थे अपने अधरों पे, जो..........   3) नमी है हवा में, दीवारों में है सीलन, धूप कमरे तक पहुचती नहीं … कितना भी सुखाओ, खमबख्त फंफूंद लग ही जाती है, यादों में!

बूढ़ा बस स्टैंड

लड़ाई हुई थी अपनी आँखों की , पहली मुलाक़ात पर , वह बूढ़ा सा बस स्टैंड , मुस्कुराया था देख हमें , जाने कितनी बार मिले थे हम वहाँ , जाने कितने मिले होंगे वहाँ हम जैसे , वह शब्दों की पहली जिरह , या अपने लबों की पहली लड़ाई , सब देखा था उसने , सब सुना था , चुपचाप , खामोशी से , बोला कुछ नहीं। कहा नहीं किसी से , कभी नहीं। कितनी बार तुम्हारे इंतज़ार में , बैठा घंटों , जब तुमने आते-2 देर कर दी। जब कभी नाराज़ हो मुझे छोड़ चली गयी तुम , कई पहर , उंगली थामे उसकी , गोद में बैठा रहा उसके। उसके कंधे पर सर रख के। याद है वहीं कहीं गुमा दिया था तुमने दिल मेरा , हंसा था मेरी बेबसी पर वह , अब वह बूढ़ा स्टैंड वहाँ नहीं रहता , कोई fly over गुजरता है वहाँ से देखा था, जब आया था तुम्हारे शहर पिछली बार। कहीं चला गया होगा वह जगह छोड़ , उस बदलाव के उस दौर में , जब सब बदले थे , मैं , तुम और हमारी दुनियाँ ! अब जो सलामत है वह बस यादें हैं , और कुछ मुट्ठी गुजरा हुआ कल , याद आता है वह दिन, जब तुम्हारा दिल रखने को तुम्हारे नए जूतों की तारीफ की थ