साला , madhadchod ... हरामी सूअर की औलाद............गालियाँ मध्धम होती गई..... चिलचिलाती धूप हरी राम को वापस वर्तमान में ले आई ... पसीने की वज़ह से बदन से चिपक गए कुर्ते को हाथों से शरीर से अलग करने लगा मगर कुर्ता तो फेविकोल की भांती चिपका पड़ा था ....अभी तो ३ ही बजाए थे घड़ी ने.... सड़क के किनारे नीम के पेड़ के छाव में बैठा गया.... दिल घर जाने को बेकरार था मगर ..ना जाने कितने ही सवाल उसके आने के इन्तिज़ार में खड़े होंगे मोहल्ले में.... बात सिर्फ़ मोहाल्ले के लोगों की होती तो नही डरता दिन में जाने से .. मगर गोलू के सवालों का क्या जबाब देगा? पापा पापा क्या अपने ४ लोगों को मार डाला है, अपनी बस से कुचल... किसने बोला तुझसे ये... गला घोंट दूंगा साले का....... जो मेरे बेटे को अनाप सनाप पट्टी पढाएगा....किस-किस का गला घोटोगे तुम.... मेरी किस्मत ही फूटी थी जो शादी की तुम से... पापा तो संदीप से शादी करा रहे थे delhi पुलिस में था... उससे शादी होती तो ये बार बार जेल में नही आना पड़ता .. आती भी तो एक पुलिस वाले की बीबी बन .. एक सजायाफ्ता कैदी से मिलने नही..... ३ साल में दूसरी बार सज़ा कट रहे हो............ बहन की लौंडी..ज्यादा जबान चलाएगी तो मुह तोड़ दूंगा .. एक बार बाहर आने दे । फिर तेरी .....................
ये सब उस हरामी डीटीसी के ड्राईवर की वज़ह से हुआ था.... साला पैसे ले कर भी ओवर टेक कर रहा था... नीम के पेड़ से झर झर कर सूरज की रौशनी उसे उसके बदन को नहला रही थी पसीना बदस्तूर बहे जा रहा था... धरती का पारा उसके गुस्से को भी बढावा दे रही थी ... उठा था वहां से ... अब घर जाना था उसे... अब नही रोकेगा अपने पैरों को... क्यो रोके ? ऐसा भी क्या गुनाह कर दिया था उसने ? उस बाइक वाले की ग़लती नही थी?.. ४ लोगों को बैठा रक्खा था ? उन हरामियों को उसी के बस की निचे मरना था? भाग ही जाता अगर उस स्कूल के छोकरे ने नही पकड़ा होता... २-३ तो लगा भी दिए थे....मगर भिंड जमा हो गई थी तब तक..कदम फिर से रुक गए.. स्टैंड पर जा बैठा...एक स्च्चूली बच्चे रोड को भाग कर पर करते देख , बौराए कुत्ते की तरह दौड़ पड़ा उसके पीछे... चूतिये की औलाद..पटक.. माँ....... बचाओ...बिन मौसम लात घूसों की बारिश... स्क्कुली बच्चा .. बैग छोड़ जान बचाने को भगा. ....छोडो मुझे इसे मैं बता दूंगा ...रोड क्रास करने सिखाऊंगा...गटागट ४ गिलास पानी पी गया ..२ रुपये के लिए हाँथ जेबें टटोल रहे थे ... ऑंखें रोते बच्चे को.... कण कुछ और सुनाने को तैयार नही.... भीड़ क्या कह रही थी.... कोई मायने नही था ....... लम्बी -२ सांसे ले ख़ुद को नियंत्रित कने की कोशिश जारी थी..... भीड़ में खड़ा हर चेहरा दुश्मन ही नज़र आ रहा था.. एक स्चूली लड़का ... उसे धर दबोचने को तैयार..... कोई अपने जुटे हाँथ में लिए उसे मरने को उतारू ... कोई घुसा ताने उसकी तरफ़ दौड़ता......... अपने कपडे खुनसे सने ......... आँखे बंद कर बैठ गया...... बस रुकने की आवाज़ से जब आंख खोली तो ... बस के टायर खून से सने दिख रहे थे... उनके बिच फंसे बच्चे के शरीर से अभी भी खून टपक रहा था.... ऑंखें बाहर लटकी पड़ी थी..... आआआआआआआअ .............................. चिल्ला उठा ...... क्या हुआ? लगता है कोई सपना देख रहा था.... सही है बही हमे तो रातों को भी सपने नही आते और इन्हे तो दिन में ही......... हा ह अह हा हा हा /........ कानों छेदती हँसी ...... कहाँ जाना है?... भइया संगम विहार जाओगे........ ऑटो चल पड़ा......
आधे खुले दरवाजे से झांकती आँखें ... नज़रे मिलते ही सर झुका ली अपनी..... ऑटो का किराया देना है... हिम्मत नही जुटा पाया की बहार देख ले... कितनी ऑंखें इन्तिज़ार थी... या नही थी...... बस ऑंखें मूंदे खटिये पर जा गिरा... शुतुरमुर्ग????????/ नही नही.... ...... मान बैठा कि अब वो महफूज़ है...... इस बार मानसून कुछ ज्यादा ही मेहरबान हुआ पड़ा था डेल्ही पर....... ३-४ दिन गुजरते ही अब सामान्य हो चला हरी राम ....... शौच के बाद हाथ धोते.. नहाते वक्त अपने हाथों को खूब निहारता ...... साबुन ने खून के दाग धो डाले थे.... बस के टायरों के बिच पासा बच्चा गायब हो गया था..... .. मगर अभी बहार जाने से डर लग रहा था.... आने के बाद एक बार भी अख़बार पर नज़र नही डाली थी.... टीवी तो भूल कर भी नही देखा.... मिडिया वाले तो हाँथ धो ब्लू लाइन के पीछे पड़े हैं.... किलर लाइन ... ना जाने कितने नाम..... पाचवे दिन घर से निकल ही पड़ा .. स्कूटर पर ... लाडो और गोलू को ले.... सफ़ेद कुर्ते में कही भी दाग नही थे.... धुल जो गए थे....... हौज़ खास से ही ट्रैफिक उसी के स्वागत में खड़ी मिली.... मुनिरका तक पहूचते-२ हार्न की आवाज़ ने अच्छे मूड का गुड गोबर कर दिया था.... अब उसे जल्दी से पालम पहुचना था...... तेजी से निकला ..... जगह जगह फ्लाई ओवर बन रहे थे........ हर जगह diversion ..... मलाई मन्दिर के आगे के रेड लाआईटी पर रुका ही था कि........ चूऊऊऊऊओ धडाम................. मरो साले... भागने न पाए..... मधाद्चोद ब्लू लाइन वाले....साला , madhadchod ... हरामी सूअर की औलाद............गलियां अब तेज़ होती जा रही थी.. .. .हर तरफ अन्धकार......... हिमत जुटा ऑंखें खोली... ..ड्राईवर को पिट रहे थे लोग...... अरे ये ड्राईवर कौन है..... अरे वही है हरी राम ही.है वो ख़ुद है ड्राईवर के भेष में .. किसीने सहारा दे खड़ा किया ...बस के पहिये को देखा.... बिच में फसा बच्चा अब साफ साफ दिख रहा था..... ये तो गोलू है.......लाडो का सर खून से सना हुआ क्यो है.....? कुरता लाल क्यो होता जा रहा है ? ... खून के दाग ही दाग नज़र आ रहे है.... कुरता फ़िर से चिपकने लगा है.... खून तो फैलता ही जा रहा है ......हाँथ खून से सनने हुए क्यो हैं..... कुछ समझ नही पा रहा था हरिराम... दौड़ कर पास के फ़ुट पथ पर हाथ साफ करने लगा...बार-२ हाँथ को मिटटी में रगड़ रहा था॥ ........खून के दाग मिटे कब हैं.. जो मिट जाते ...... गोलू अभी भी टायर में फसा नज़र आ रहा था ..और ... खून टप टप टपक रहा था .... ड्राईवर की पिटाई बदस्तूर जरी थी...........
ये सब उस हरामी डीटीसी के ड्राईवर की वज़ह से हुआ था.... साला पैसे ले कर भी ओवर टेक कर रहा था... नीम के पेड़ से झर झर कर सूरज की रौशनी उसे उसके बदन को नहला रही थी पसीना बदस्तूर बहे जा रहा था... धरती का पारा उसके गुस्से को भी बढावा दे रही थी ... उठा था वहां से ... अब घर जाना था उसे... अब नही रोकेगा अपने पैरों को... क्यो रोके ? ऐसा भी क्या गुनाह कर दिया था उसने ? उस बाइक वाले की ग़लती नही थी?.. ४ लोगों को बैठा रक्खा था ? उन हरामियों को उसी के बस की निचे मरना था? भाग ही जाता अगर उस स्कूल के छोकरे ने नही पकड़ा होता... २-३ तो लगा भी दिए थे....मगर भिंड जमा हो गई थी तब तक..कदम फिर से रुक गए.. स्टैंड पर जा बैठा...एक स्च्चूली बच्चे रोड को भाग कर पर करते देख , बौराए कुत्ते की तरह दौड़ पड़ा उसके पीछे... चूतिये की औलाद..पटक.. माँ....... बचाओ...बिन मौसम लात घूसों की बारिश... स्क्कुली बच्चा .. बैग छोड़ जान बचाने को भगा. ....छोडो मुझे इसे मैं बता दूंगा ...रोड क्रास करने सिखाऊंगा...गटागट ४ गिलास पानी पी गया ..२ रुपये के लिए हाँथ जेबें टटोल रहे थे ... ऑंखें रोते बच्चे को.... कण कुछ और सुनाने को तैयार नही.... भीड़ क्या कह रही थी.... कोई मायने नही था ....... लम्बी -२ सांसे ले ख़ुद को नियंत्रित कने की कोशिश जारी थी..... भीड़ में खड़ा हर चेहरा दुश्मन ही नज़र आ रहा था.. एक स्चूली लड़का ... उसे धर दबोचने को तैयार..... कोई अपने जुटे हाँथ में लिए उसे मरने को उतारू ... कोई घुसा ताने उसकी तरफ़ दौड़ता......... अपने कपडे खुनसे सने ......... आँखे बंद कर बैठ गया...... बस रुकने की आवाज़ से जब आंख खोली तो ... बस के टायर खून से सने दिख रहे थे... उनके बिच फंसे बच्चे के शरीर से अभी भी खून टपक रहा था.... ऑंखें बाहर लटकी पड़ी थी..... आआआआआआआअ .............................. चिल्ला उठा ...... क्या हुआ? लगता है कोई सपना देख रहा था.... सही है बही हमे तो रातों को भी सपने नही आते और इन्हे तो दिन में ही......... हा ह अह हा हा हा /........ कानों छेदती हँसी ...... कहाँ जाना है?... भइया संगम विहार जाओगे........ ऑटो चल पड़ा......
आधे खुले दरवाजे से झांकती आँखें ... नज़रे मिलते ही सर झुका ली अपनी..... ऑटो का किराया देना है... हिम्मत नही जुटा पाया की बहार देख ले... कितनी ऑंखें इन्तिज़ार थी... या नही थी...... बस ऑंखें मूंदे खटिये पर जा गिरा... शुतुरमुर्ग????????/ नही नही.... ...... मान बैठा कि अब वो महफूज़ है...... इस बार मानसून कुछ ज्यादा ही मेहरबान हुआ पड़ा था डेल्ही पर....... ३-४ दिन गुजरते ही अब सामान्य हो चला हरी राम ....... शौच के बाद हाथ धोते.. नहाते वक्त अपने हाथों को खूब निहारता ...... साबुन ने खून के दाग धो डाले थे.... बस के टायरों के बिच पासा बच्चा गायब हो गया था..... .. मगर अभी बहार जाने से डर लग रहा था.... आने के बाद एक बार भी अख़बार पर नज़र नही डाली थी.... टीवी तो भूल कर भी नही देखा.... मिडिया वाले तो हाँथ धो ब्लू लाइन के पीछे पड़े हैं.... किलर लाइन ... ना जाने कितने नाम..... पाचवे दिन घर से निकल ही पड़ा .. स्कूटर पर ... लाडो और गोलू को ले.... सफ़ेद कुर्ते में कही भी दाग नही थे.... धुल जो गए थे....... हौज़ खास से ही ट्रैफिक उसी के स्वागत में खड़ी मिली.... मुनिरका तक पहूचते-२ हार्न की आवाज़ ने अच्छे मूड का गुड गोबर कर दिया था.... अब उसे जल्दी से पालम पहुचना था...... तेजी से निकला ..... जगह जगह फ्लाई ओवर बन रहे थे........ हर जगह diversion ..... मलाई मन्दिर के आगे के रेड लाआईटी पर रुका ही था कि........ चूऊऊऊऊओ धडाम................. मरो साले... भागने न पाए..... मधाद्चोद ब्लू लाइन वाले....साला , madhadchod ... हरामी सूअर की औलाद............गलियां अब तेज़ होती जा रही थी.. .. .हर तरफ अन्धकार......... हिमत जुटा ऑंखें खोली... ..ड्राईवर को पिट रहे थे लोग...... अरे ये ड्राईवर कौन है..... अरे वही है हरी राम ही.है वो ख़ुद है ड्राईवर के भेष में .. किसीने सहारा दे खड़ा किया ...बस के पहिये को देखा.... बिच में फसा बच्चा अब साफ साफ दिख रहा था..... ये तो गोलू है.......लाडो का सर खून से सना हुआ क्यो है.....? कुरता लाल क्यो होता जा रहा है ? ... खून के दाग ही दाग नज़र आ रहे है.... कुरता फ़िर से चिपकने लगा है.... खून तो फैलता ही जा रहा है ......हाँथ खून से सनने हुए क्यो हैं..... कुछ समझ नही पा रहा था हरिराम... दौड़ कर पास के फ़ुट पथ पर हाथ साफ करने लगा...बार-२ हाँथ को मिटटी में रगड़ रहा था॥ ........खून के दाग मिटे कब हैं.. जो मिट जाते ...... गोलू अभी भी टायर में फसा नज़र आ रहा था ..और ... खून टप टप टपक रहा था .... ड्राईवर की पिटाई बदस्तूर जरी थी...........
टिप्पणियाँ
Is it the only part? Make two parts and add the court scene, how he has been treated after first accident and afterwords.
लघुकथा बहुत अच्छी लगी. अपने ब्लाग का शीर्षक भी हिन्दी में कर दो, साथ ही शब्दों का पुष्टीकरण भी बंद कर दो, इससे किसी को भी टिप्पणी भेजने में सहूलियत होगी. इतने महीने से ब्लाग निकाल रहे हो लेकिन अनिल जी सूचना आज दी. खैर शेष फिर कभी.
नवीन प्रस्तुति का इंतजार करूंगा.