आँखें ठहर सी गई उस पेंटिंग पर .... पेड़ के नीचे खड़ी लोमड़ी.... अंगूर के गुच्छों को एक टक देखती लोमडी की आँखें ... थोडी अलसाई .. थोडी नशीली ... थोडी नींद से बोझिल आँखें निहार के अलावा किसकी हो सकती थी........
"तो तुम्हे सच में ये लगता है की मुझे तुमसे एक दिन प्यार हो जाएगा?" IIT कैंटीन में बैठे निहारिका ने निहार से पूछा था..
"हाँ"
"हा हा हा हा ... तुम जागते हुए सपने देखना कब छोड़ोगे?"
"यह हकीकत है "
"ओह रिअली ! यू मीन आई विल फाल इन लव विद यू?"
" हाँ"
" हे हे हे... " निहारिका की हसी रुक ही नही रही थी.. " मजाक तुम से अच्छा कौन करेगा..?"
"मजाक नही है यह... प्यार करने लगोगी तुम मुझसे.."
"नो वे"
"शर्त लगा रहे हो?"
"हार जाओगे .."
" मुझे हारना नही आता "
" तो अब सीख जाओगे"
" तुम शर्त लगा रहे हो ?"
"अब हारने को कोई मरा जा रहा है तो मुझे क्या! डन!.."
" वह तो वक्त ही बताएगा ..."
" तुम और तुम्हारा optimism... ! वैसे तुम्हे पता भी है कि प्यार किसे कहते हैं ?"
बस एक खामोश मुस्कराहट थी निहार के चहरे पर..
" मैं और अनिकेत पिछले १० सालों से एक दूसरे को प्यार करते हैं.. उसके अलावा किसी और का ख्याल आ ही नही सकता मेरे मन में..!
" अच्छा जी ! तो आप रात के ९ बजे अनिकेत से छुप मेरे साथ इस कैंटीन में क्या कर रहे हो...?"
" क्योकि तुम मेरे दोस्त हो."
"दोस्त तो और भी हैं फिर ..."
" वह हामारे रिश्ते को नही समझ सकता! उसे तो तुम्हारे नाम से ही चिदहै.."
" हूँ .. तो क्या तुम हामारे रिश्ते को समझते हो.."
दूसरी तरफ़ सिर्फ़ एक खामोशी थी.
"चुप क्यो हो गए?"
"यह बकवास बंद करो तुम ! और ये बात आपने दिमाग से निकल दो तो बेहतर होगा कि मैं तुम्हे एक दोस्त से से कुछ ज्यादा समझती हूँ . यहाँ सिर्फ़ हार ही मिलने वाली है तुम्हे !" आवाज़ की चिड-चिदाहट साफ पता चल रही थी ...
"जीत तो सिर्फ़ निहार की ही होगी."
"ओ.के. सपने देखते रहो कि . तुम जीत जाओगे . और मेरी शादी तुम से हो जायेगी..है ना?"
"तुमसे शादी करनी भी नही है मुझे .."
"हा हा हा हा.." अब उसकी हंसी रुकने का नाम ने ले रही थी.......... तुमसे शादी करनी भी नही.... हे........हूँ अंगूर खट्टे हैं ना?"
सिर्फ़ मुस्करा कर रह गया निहार.
"अंगूर खट्टे हैं ना? हे हे हे ... तुम नही जीत पाओगे "
" जिंदगी एक अजीब पहेली है मेरे दोस्त! जिसकी कोई शिकस्त हमें जीत से ज्यादा हसीन लगाती है. उस हार का नशा जीत के खुमार से ज्यादा होता है !"
"हूँ?"
"तुम जीते तब भी मेरी ही जीत होगी, अगर मैं जीता तो कहना ही क्या..."
"मेरी जीत मे तुम्हारी जीत कैसे हो सकती है.. ?"
" क्योकि प्यार में कभी हार नही होती! तुम्हारी जीत यानि कि उसकी जीत जिससे मैं प्यार करता हूँ. और मैं जीता तो... अब बताओ मैं हारा कहाँ?
उसके चहरे को गौर से देखे जा रही थी निहारिका और वो अपने धुन मे बोले जा रहा था.
"वैसे मैं ये दुआ करूंगा कि शिकस्त मेरे ही हिस्से आए !"
" भला वो क्यो?"
तुम्हे हारते हुए नही देख पाउंगा!"
मन मे आया एक बार फिर कहे "अंगूर खट्टे हैं" मगर कुछ कह नही पाई..
"वैसे सारी रात यही गुजरने का इरादा है क्या किसी का?"
चुप चाप उठ उसके पीछे चल पड़ी.. उनके बीच आ चुकी खामोशी ने वार्तालाप का अंत कर दिया था..
धडाम -२ हवा से बजाते खिड़की के पल्ले ने निहारी को वर्तमान मे लौटने पर मजबूर किया.. उसे बंद कर दुबारा पलंग पर बैठ गयी! और नज़रें दुबारा पेंटिंग का दीदार करने लगी..
"तो तुम्हे सच में ये लगता है की मुझे तुमसे एक दिन प्यार हो जाएगा?" IIT कैंटीन में बैठे निहारिका ने निहार से पूछा था..
"हाँ"
"हा हा हा हा ... तुम जागते हुए सपने देखना कब छोड़ोगे?"
"यह हकीकत है "
"ओह रिअली ! यू मीन आई विल फाल इन लव विद यू?"
" हाँ"
" हे हे हे... " निहारिका की हसी रुक ही नही रही थी.. " मजाक तुम से अच्छा कौन करेगा..?"
"मजाक नही है यह... प्यार करने लगोगी तुम मुझसे.."
"नो वे"
"शर्त लगा रहे हो?"
"हार जाओगे .."
" मुझे हारना नही आता "
" तो अब सीख जाओगे"
" तुम शर्त लगा रहे हो ?"
"अब हारने को कोई मरा जा रहा है तो मुझे क्या! डन!.."
" वह तो वक्त ही बताएगा ..."
" तुम और तुम्हारा optimism... ! वैसे तुम्हे पता भी है कि प्यार किसे कहते हैं ?"
बस एक खामोश मुस्कराहट थी निहार के चहरे पर..
" मैं और अनिकेत पिछले १० सालों से एक दूसरे को प्यार करते हैं.. उसके अलावा किसी और का ख्याल आ ही नही सकता मेरे मन में..!
" अच्छा जी ! तो आप रात के ९ बजे अनिकेत से छुप मेरे साथ इस कैंटीन में क्या कर रहे हो...?"
" क्योकि तुम मेरे दोस्त हो."
"दोस्त तो और भी हैं फिर ..."
" वह हामारे रिश्ते को नही समझ सकता! उसे तो तुम्हारे नाम से ही चिदहै.."
" हूँ .. तो क्या तुम हामारे रिश्ते को समझते हो.."
दूसरी तरफ़ सिर्फ़ एक खामोशी थी.
"चुप क्यो हो गए?"
"यह बकवास बंद करो तुम ! और ये बात आपने दिमाग से निकल दो तो बेहतर होगा कि मैं तुम्हे एक दोस्त से से कुछ ज्यादा समझती हूँ . यहाँ सिर्फ़ हार ही मिलने वाली है तुम्हे !" आवाज़ की चिड-चिदाहट साफ पता चल रही थी ...
"जीत तो सिर्फ़ निहार की ही होगी."
"ओ.के. सपने देखते रहो कि . तुम जीत जाओगे . और मेरी शादी तुम से हो जायेगी..है ना?"
"तुमसे शादी करनी भी नही है मुझे .."
"हा हा हा हा.." अब उसकी हंसी रुकने का नाम ने ले रही थी.......... तुमसे शादी करनी भी नही.... हे........हूँ अंगूर खट्टे हैं ना?"
सिर्फ़ मुस्करा कर रह गया निहार.
"अंगूर खट्टे हैं ना? हे हे हे ... तुम नही जीत पाओगे "
" जिंदगी एक अजीब पहेली है मेरे दोस्त! जिसकी कोई शिकस्त हमें जीत से ज्यादा हसीन लगाती है. उस हार का नशा जीत के खुमार से ज्यादा होता है !"
"हूँ?"
"तुम जीते तब भी मेरी ही जीत होगी, अगर मैं जीता तो कहना ही क्या..."
"मेरी जीत मे तुम्हारी जीत कैसे हो सकती है.. ?"
" क्योकि प्यार में कभी हार नही होती! तुम्हारी जीत यानि कि उसकी जीत जिससे मैं प्यार करता हूँ. और मैं जीता तो... अब बताओ मैं हारा कहाँ?
उसके चहरे को गौर से देखे जा रही थी निहारिका और वो अपने धुन मे बोले जा रहा था.
"वैसे मैं ये दुआ करूंगा कि शिकस्त मेरे ही हिस्से आए !"
" भला वो क्यो?"
तुम्हे हारते हुए नही देख पाउंगा!"
मन मे आया एक बार फिर कहे "अंगूर खट्टे हैं" मगर कुछ कह नही पाई..
"वैसे सारी रात यही गुजरने का इरादा है क्या किसी का?"
चुप चाप उठ उसके पीछे चल पड़ी.. उनके बीच आ चुकी खामोशी ने वार्तालाप का अंत कर दिया था..
धडाम -२ हवा से बजाते खिड़की के पल्ले ने निहारी को वर्तमान मे लौटने पर मजबूर किया.. उसे बंद कर दुबारा पलंग पर बैठ गयी! और नज़रें दुबारा पेंटिंग का दीदार करने लगी..
टिप्पणियाँ