बहुत खुश थी वो ! इतना खुश कभी नही देखा था उसे, मुस्कुराने लगा निहार मगर दिल था जो बैठा ही जा रहा था.......
"कहते हैं जब प्यार हो जाए तो दुनिया ख़ूबसूरत नज़र आती है, हर पल एक नई खुशियों की सौगात लती है मगर यहाँ तो ..... सब की खुशी मे खुश रहने वाला इन्सान ,जिसके लिए जिंदगी हमेश ही कुछ न कुछ ऐसी सौगात हमेशा ही लाती है जो हमारे लबों पर muskuraahat ला सके..... आज जिससे प्यार करता है उसी के खुशी से दूखी था ! घिन आने लगी थी उसे अपने आप से....... सच मे निहार बदल गया था.... "
"ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली थी, निहार खिड़की से बाहर देख रहा था... बगल की पटरी पर दौड़ती हुई ट्रेन की आवाज़ ने चौका दिया उसे ... जाने कब झपकी लग गई थी ... एक काफ़ी ले फिर से बाहर देखने लगा.... समानांतर गुजरती हुई रेल की पटरियां.... या निहार और निहारिका? शायद ... नही यकीनन ये तो यही दोनों हो सकते थे..... जितने पास उतने ही दूर.... "
"सोच रहा था उसे हमेशा consolation prize यानि सांत्वना पुरस्कार ही क्यो मिलता है..... स्कूल के quize , ..........................and last but not the least the consolation prize go to NIHAR..... nihar dear just work hard u can do better..... प्रतिमा ma'am की आवाज कानों में गूंज गई.... नजाने कितनी बार उसका नाम उस स्टेज से पुकारा गया था!.... ५-६ या ७ बार ... याद ही नही... just work hard n u can do better..... work hard and u can do better.... स्कूल मे नही समझ पाया की कहाँ कमी रही थी और आज जिंदगी मे भी wahi consolation priz... सांत्वना पुरस्कार..... एक पुरस्कार जो हमेशा हरने का एहसास दिलाता रहे..... या एक certificte जो ये बता सके की आप जिंदगी की दौड़ मे पिछड़ गए या आपसे आगे कई लोग निकल गए..... वैसे अभिनव ऐसा नही मानता उसकी माने तो ये certificate ये बताते हैं की आप भी जितने की होड़ मे शामिल थे.... जो भी हो ये बात तो तय है कि consolation prize पाने वाले विजेता नही होते..... मुस्कराहट के अलावा क्या ला सकता था वो चहरे पर..."
"कहते हैं जब प्यार हो जाए तो दुनिया ख़ूबसूरत नज़र आती है, हर पल एक नई खुशियों की सौगात लती है मगर यहाँ तो ..... सब की खुशी मे खुश रहने वाला इन्सान ,जिसके लिए जिंदगी हमेश ही कुछ न कुछ ऐसी सौगात हमेशा ही लाती है जो हमारे लबों पर muskuraahat ला सके..... आज जिससे प्यार करता है उसी के खुशी से दूखी था ! घिन आने लगी थी उसे अपने आप से....... सच मे निहार बदल गया था.... "
"ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली थी, निहार खिड़की से बाहर देख रहा था... बगल की पटरी पर दौड़ती हुई ट्रेन की आवाज़ ने चौका दिया उसे ... जाने कब झपकी लग गई थी ... एक काफ़ी ले फिर से बाहर देखने लगा.... समानांतर गुजरती हुई रेल की पटरियां.... या निहार और निहारिका? शायद ... नही यकीनन ये तो यही दोनों हो सकते थे..... जितने पास उतने ही दूर.... "
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