लोमडी की आँखें ... या निहार की आँखें....... ... आँखें जो बिन कहे सब कुछ कह जायें....... आँखे जिसने कभी भी निहारिका से झूठ नही बोला........ निहार की ही हो सकती हैं ये आँखें ........... और इन आंखों ने देखते देखते उसे माज़ी (अतीत) के हवाले कर दिया... याद आ गया वो दिन जब वह निहार से मिली थी....... .उस दिन काल सेंटर जाने का मन बिल्कुल ही नही था। मगर जाना ही पडा... सुबह घर पहुचते ही अनिकेत का कॉल ... लडाई... फिर पुरे दिन सो भी नही सकी ... शाम को ओफ्फिस ॥ वही रोज की कहानी .... सर दर्द से फटा जा रहा था ... काम छोड़ .... बहार निकल गई, कॉरिडोर तो पुरा सिगरेट के धुएं से भरा था .. 'पता नही लोग सिगरेट पिने आते हैं या काम करने ' ........... कैंटीन में जा कर बैठ गई.. अपने और अनिकेत के रिश्ते के बारे में सोचने लगी ... न जाने किस की नज़र लग गई थी....वह ग़लत नही थी.. अनिकेत भी ग़लत नही था अगर उसकी माने तो.. फिर ग़लत कौन था...और ग़लत क्या था.. ..अब उन्हें एक दुसरे की उन्ही आदतों से चिड होने लगी थी जिन पर कभी मर मिटते थे.. आज-कल उसे कोई भी वज़ह नही नज़र नही आ रही थी जिसकी वजह से दोनों साथ रहें .. फिर भी साथ क्यो हैं? .. एक आदत एक दुसरे के साथ की.. या कुछ और.. अगर यह आदत है तो फिर एक दूसरे की आदतों से ही परेशानी क्यो है..? स्कूल के दिन याद आ रहे थे .. कितने अच्छे थे.. कम से कम future , career ... इनका टेंशन तो नही होता था... या इन बातों को ले कर कभी भी लडाई तो नही होती थी.. स्कूल जाते वक्त नुक्कड़ पर बजाते गाने याद आ रहे थे.. .. रोज सुबह की वह बेकरारी की आज कौन सा गाना बजाय जाएगा उसके लिए.. सुबह अनिकेत ना जाने कब से खड़ा रहता था वहां अपनी साइकिल ले.. शायद ही कभी हुआ जब उसे वहां नही पाया हो.. कितना अजीब लगता था जब उसे नही देखती थी वहां ... वह पहली बारिश.. जब सावन बरसे तरसे दिल .... बजाय गया था... कितना भीगे थे वो दोनों उस बरसात में.... आज भी बारिश हुई थी ......और आज भी भीगी थी ......आसूओं के सैलाब में.......
१) शाम की लालिमा ओढ़े विशाल व्योम को देखा, रात को जलते बुझते जुगनू से कुछ सपने, अब आसमान छोटा और सपने बड़े लगते हैं मुझे! २) उसकी आवाज़ वादी में गूंजती रहती है, कहते हैं वो बहुत सुरीला था कभी, पर लोग अब उसे कश्मीर कहते हैं... ३) वो आग जैसी थी, सूरज सी गर्म उसके एक इशारे पर हवाएं अपना रुख बदल लेती थी, सुना है कल अपन घर जला बैठी है वो.... ४) बहुत ऊँचा उड़ाती थी वो, आसमान में सुराख़ कर आई, सुना है उस सुराख़ से खून टपकात है उसका....
टिप्पणियाँ
हंसी खंशी की बातें क्या कम पड़ रही हैं
ब्लोगल वार्मिंग में आपका स्वागत है
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उल्टा तीर
मैं मलयलम का एक ब्लोगर, थोड़ा थोड़ा हिन्दी में भी ।