भू-२ कर स्वाहा होने लगा रावण.. नेता जी के तीर ने रावण की आहुति दे दी थी... 'वह' परेशां सा रावण दहन का यह दृश देखता रहा.. अब उसे भी किसी नेता को तलाशना होगा, नेता तीर चला उसके अन्दर छुपे रावण का दहन कर देगा.. खुश हुआ एक पल को.. नेता की तलाश शुरू हो गयी... पर हर चेहरे के पीछे उसे कोई ना कोई रावण जरुर दिखा.. क्या करे... भला कोई रावण खुद का दहन भी करता है क्या? क्यों कोई खुद को जलाएगा? फिर वो क्यों उतारू है वह अपने अन्दर के रावण को मारने को? राम की तलाश अधूरी रही... सोचते -२ उसने सिगरेट जलाई.. मुस्कुराया ... सोच खुश था..... कि अब अन्दर का रावण दहन होगा... ना भी हुआ तो कभी ना कभी तो अन्दर के रावण का दम घुट ही जायेगा !
कभी -कभी बाज़ार में यूँ भी हो जाता है, क़ीमत ठीक थी, जेब में इतने दाम न थे... ऐसे ही एक बार मैं तुमको हार आया था.........! .... गुलज़ार